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सफलता की कहानी ——————— बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर मत्स्य कृषक कर रहे उन्नति* जिले के 04 मत्स्य कृषक बायोफ्लॉक तकनीक के उपयोग से मछली पालन कर कमा रहे अच्छी आमदनी*

सफलता की कहानी

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बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर मत्स्य कृषक कर रहे उन्नति*

 

जिले के 04 मत्स्य कृषक बायोफ्लॉक तकनीक के उपयोग से मछली पालन कर कमा रहे अच्छी आमदनी*

 

बायोफ्लॉक तकनीक भविष्य की आमदनी का एक अच्छा स्रोत

 

प्रकाश कुमार गुप्ता

 

झारखंड: राज्य का पश्चिम सिंहभूम जिला वन, पर्यावरण, खनिज संपदा से भरापूरा हैं। फिर भी यहाँ युवा वर्ग का पलायन करना एक विकट समस्या है। प्रायः देखा जाता है, कि शिक्षित बेरोजगार युवक/युवती जिला छोड़कर किसी और राज्य के तरफ रोजगार हेतु पलायन कर जाते हैं। बेरोजगारों के लिए सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं चलाई जाती है, परंतु जमीन की कमी और पैसों की कमी होने के कारण लोग अपना रोजगार नहीं ले पा रहे हैं। इसी के परिपेक्ष में बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना रोजगार का एक अच्छा जरिया माना जाने लगा है। बायोफ्लॉक तकनीक से कम भूमि, कम लागत, कम जल से भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसलिए आज के दौर में बायोफ्लॉक तकनीक का प्रयोग तेजी से किया जा रहा है। जैसे कि हम जानते है, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण लोगो के पास जमीन का कमी होते जा रहा है। साथ ही साथ वर्षा भी दिनों-दिन कम होने के कारण भूमिगत जल का स्तर भी नीचे जा रहा है। ऐसे परिस्थिति में बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करना भविष्य में रोजगार के एक अच्छा स्रोत साबित होगा।

 

*पश्चिम सिंहभूम जिले में 04 बेरोजगार बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करके अच्छी आमदनी कमा रहे जिनकी सफलता के कहानी इस प्रकार हैं*

 

राजकुमार मुंडा सदर चाईबासा के निवासी हैं। यह एक शिक्षित कृषक हैं। पूर्व में इनके द्वारा खेती किया जाता रहा है, परंतु उम्मीद के अनुसार मुनाफा नहीं मिला है। ज्यादातर उन्हें घाटा का सामना करना पड़ा है। कोविड-19 विकट परिस्थिति में इन की दयनीय स्थिति और खराब हो गई तत्पश्चात उन्होंने जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क किया और उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा के तहत बायोफ्लॉक तकनीक का लाभ दिया गया। इस तकनीक से उन्होंने कोमोनकार, मोनोसेल्स, तेलपिया, देसी मांगुर जैसे प्रजाति का पालन किया प्रत्येक टैंक से वे 05 से 06 क्विंटल मछली का उत्पादन करते है। इससे उनके जीवनशैली में काफी सुधार आया हैं। क्योंकि इससे ज्यादा मुनाफा कमा रहे है। उन्होंने बताया कि आज वह अच्छी आमदनी के कारण अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करा रहे हैं और अच्छी जीवन निर्वाह कर रहे हैं।

 

बालवीर सेन ये चक्रधरपुर प्रखंड के निवासी हैं। पूर्व में ये किसी कंपनी में राज्य के बाहर काम करते थे, परंतु नौकरी चले जाने के बाद रोजगार की तलाश में जिला मत्स्य कार्यालय पहुंचे वहां उन्हें चल रही योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दिया गया जिसमें उन्होंने बायोफ्लॉक तकनीक पर विशेष रुचि दिखाई फिर उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ दिया गया। वर्तमान में वे कवई, कोमोनकार, अमुरकार, इत्यादि मछलियों का कारोबार कर रहे हैं। वर्तमान में वे 04 से 05 लाख का आमदनी कमा रहे हैं।

 

ज्योतिन बिरुवा ग्राम सिलदौरी प्रखंड हाटगमरिया के निवासी हैं। इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होने के बावजूद भी इन्हें कम मेहनत एवं कम लागत से ज्यादा मुनाफा कमाकर सुकून की जिंदगी जीना चाहते थे। ऐसी रोजगार की खोज में उन्हे जिला मत्स्य कार्यालय द्वारा बायोफ्लॉक तकनीक योजना अपनाने का सुझाव दिया गया। इस योजना को अपनाकर श्री बिरूवा एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और अपने बाकी के समय में अन्य कार्य भी कर रहे हैं।

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