Regional

सात सौ वर्ष प्राचीन मंदिर में जहां मां अंजनी पुत्र बजरंगबली खाते लड्डू पीते दूध*

 

 

लावनी मुखर्जी

 

यूपी:देश विदेश में माता अंजनी के लाल व राम भक्त हनुमान जी के वैसे तो हजारों मंदिर है लेकिन इटावा जिला मुख्यालय से दस किलो मीटर दूर रुरा गांव के बीहड़ में बना सिद्ध पीठ पिलुआ हनुमान मंदिर अपने आप में अनूठा है। मंदिर में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा अपने आप में अदभुत है। उनका मुंह खुला हुआ है। भक्त जो भी लड्डु या दूध का भोग लगाते है वह सीधा भगवान के उदर (पेट) में चला जाता है। पुरातत्व विभाग के शोधकर्ता भी यह पता नहीं कर सके कि आखिर यह चमत्कार क्या है। पिलुआ हनुमान मंदिर इटावा जिले के ही नहीं बल्कि देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। प्रतापनेर के अंतर्गत पड़ने वाले रुरा गांव में यमुना नदी के किनारे पिलुआ हनुमान मंदिर है। लगभग सात सौ वर्ष पुराना यह प्राचीन मंदिर सिद्ध पीठ के रुप में जाना जाता है। पहले हनुमान जी की प्रतिमा पिलुआ के पेड़ के नीचे स्थापित थी लेकिन आज यह मंदिर भव्य रुप ले चुका है और इस समय मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया जा रहा है। रुरा क्षेत्र में पिलुआ के पेड़ अधिक संख्या में होने के कारण यह मंदिर पिलुआ हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। आज यह प्राचीन मंदिर देश में ही विश्व में ख्याति पा चुुका है।

भगवान की प्रतिमा स्थापत्य एवं मूर्ति कला की दृष्टि से अत्याधिक विस्मयकारी है। वैसे तो देश भर में हनुमान जी की प्रतिमाएं कई प्रमुख मंदिरों में है लेकिन इस मूर्ति की विशेषता यह है कि हनुमान जी का साक्षत रूप है, उनका मुखारबिन्द खुला हुआ है। भगवान भक्तों का प्रसाद ग्रहण करते है। माना जाता है कि हनुमान जी की यह प्रतिमा हजारों टन लड्डू का प्रसाद ग्रहण कर चुकी है लेकिन आज तक उनका मुंह नहीं भर सका है। उनके मुखारबिन्द में जल व दूध हमेशा भरा रहता है और बराबर बुलबुले भी निकलते रहते हैं। इन बुलबुलों के बारे मंदिर के पुजारियों का कहना है हनुमान जी हर समय रामधुन रटते रहते है l मंदिर के और वह बराबर सांस लेते है। महाभारत काल से भी इस मंदिर का इतिहास जुड़ा हुआ है। पुरातत्वविदों के लिए भगवान की यह प्रतिमा आज भी शोध का विषय है। पुजारियों का कहना है कि इस सिद्ध पीठ पर जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ आते है हनुमान जी महाराज उनकी सभी मनोकामनाएं पूरा करते हैं।

*प्रतापनेर के राजा हुकुम सिंह को मिली थी प्रतिमा…….*

सिद्ध पीठ हनुमान मंदिर के महन्त हरभजनदास महाराज बताते हैं कि दक्षिणमुखी बालरूप हनुमान की यह प्रतिमा लगभग 700 वर्ष पुरानी है। प्रतापनेर स्टेट के राजा हुकुमचंद्र तेज प्रताप सिंह को प्राप्त हुई थी।

राजा शिकार खेलने के लिए वन में गए थे, रात अधिक होने के कारण वह विश्राम कर रहे थे तभी राजा को हनुमान जी ने स्वप्न दिया कि मैं यहां पर प्रकट हुआ हूं मेरी पूजा व सेवा की व्यवस्था कराई जाए। जब राजा ने आकर देखा तो हनुमान जी की उभरी हुई पत्थर की आकृति प्राप्त हुई। राजा ने पूरे राज्य का दूध एकत्र कर हनुमान जी को पिलाना शुरू किया, लेकिन वह मुंह नहीं भर पाए। बाद में उन्होंने क्षमा याचना की और एक तांबे के लोटे में भरा दूध जैसे ही भगवान को पिलाया तो उनका मुख अपने आप भर गया। राजा प्रतापनेर अपने किले के पास प्रतिमा को स्थापित कराना चाहते थे लेकिन उनके द्वारा जितनी भी खुदाई कराई जाती थी वह समतल हो जाती थी। हनुमान जी ने राजा को फिर स्वप्न दिया कि वह जहां पर विराजमान हैं वहीं पर रहेंगे। इसके बाद राजा प्रतापनेर ने इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया।

*बारिश होने का आभास कराती है प्रतिमा…..*

मंदिर के पुजारी देव प्रकाश त्यागी का कहना है कि पिलुआ हनुमान जी की वैसे तो कई विशेषताएं हैं लेकिन खास विशेषता यह है कि जब भी जिले में बारिश होने को होती है तो हनुमान जी के मुख पर बारह घंटे पूर्व कालिमा छा जाती है इससे लोगों को आभास हो जाता है कि अब जिले में बारिश होने वाली है। बारिश के शुरू होते ही भगवान की प्रतिमा फिर से अपने मूल स्वरूप में आ जाती है। क्षेत्र के लोग इसे हनुमान जी महाराज का चमत्कार मानते हैं।

Related Posts