96 साल बाद आज देश को नई संसद मिल गई
न्यूज़ लहर संवाददाता
नई दिल्ली:भारतीय लोकतंत्र के लिए आज, रविवार, 28 मई साल 2023 का बहुत ही गौरवशाली और ऐतिहासिक दिन है। 96 साल पहले अंग्रेजों के समय में दिल्ली में स्थापित की गई संसद भवन आज से अतीत के पन्नों में समाहित हो है।संसद भवन को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। करीब साढ़े नौ दशक (96 साल) बाद आज देश को नई संसद मिल गई है। हालांकि लोकतंत्र के इस ऐतिहासिक पल में विपक्ष की कई पार्टियां गायब रहीं। बता दें कि यह संसद भवन भाजपा का नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों का है, क्योंकि लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर संसद होता है। नए संसद भवन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह उद्घाटन कर दिया। इसी के साथ देश को नई संसद मिल गई है। लोगों को इस खास दिन का बेसब्री से इंतजार था।इस दौरान वहां उपस्थित सभी मेहमानों ने ताली बजाकर उद्घाटन का स्वागत किया।
प्रधानमंत्री सुबह भारतीय पारंपरिक परिधान में नए संसद परिसर पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए और फिर वहां बनाए गए पंडाल में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच हवन-पूजन में भाग लिया। विशेष अवसरों पर प्रधानमंत्री खास परिधान में नजर आते रहे हैं। आज का दिन भी खास था। लोगों की नजरें इस बात पर टिकी थीं कि उद्घाटन समारोह के लिए पीएम कौन सा परिधान पहनने वाले हैं। हुआ कुछ ऐसा ही। प्रधानमंत्री जब संसद परिसर पहुंचे तो वह खास परिधान में नजर आए। वह धोती-कुर्ता और सदरी पहने हुए थे। वहां पहले से मौजूद लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने पीएम का स्वागत किया। फिर पीएम ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए।
सेंगोल’ को लेकर पीएम लोकसभा में स्पीकर के आसन तक धीरे-धीरे बढ़े। उनके पीछे ओम बिरला भी थे। फिर पीएम स्पीकर के आसन तक गए और वहां ‘सेंगोल’ को स्थापित किया। राजदंड की स्थापना के समय पीएम के साथ लोकसभा स्पीकर बिरला भी रहे। यहां प्रधानमंत्री ने नई संसद के निर्माण में योगदान देने वाले श्रमिकों एवं शिल्पकारों को सम्मानित किया और कुछ देर उनके साथ बातचीत भी की। बता दें कि वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण, करीब एक सदी तक भारत की नियति को दिशा देने के प्रतीक और अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए ऐतिहासिक पुराने संसद भवन का उद्धाटन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी, 1927 को किया था जिसके बाद से यह इमारत कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम की साक्षी बनी। इस इमारत ने देश में आजादी का सवेरा होते देखा और इसे 15 अगस्त 1974 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक ट्राइस्ट विद डेस्टिनी (नियति से साक्षात्कार) भाषण की गवाह बनने का भी सौभाग्य मिला।