जाने श्री राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जन्म दिवस के संबंध में
न्यूज़ लहर संवाददाता
इनका जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक गाँव में 23 जून, 1901 को हुआ था।
उनके व्यक्त किए विचार को हर कोई मानता है और लाहिड़ी जैसा ही बलिदानी बनने की बात होती है। पर प्रशासनिक व राजनीतिक उपेक्षा के कारण यहां अमर शहीद के बलिदान की निशानी दुर्दशा का शिकार है। उनकी याद में गोंडा कचहरी रेलवे स्टेशन का नाम रखने की मांग भी काफी पुरानी है,
अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए ब्रिटिश माउजर खरीदने के वास्ते पैसे का प्रबंध करने के लिए पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां के साथ मिलकर राजेन्द्र लाहिड़ी ने अपने छह अन्य सहयोगियों के साथ 9 अगस्त 1925 की शाम सहारनपुर से चलकर लखनऊ पहुंचने वाली 08 डाउन ट्रेन पर धावा बोल दिया और सरकारी खजाना लूट लिया। मजे की बात यह कि उसी ट्रेन में सफर कर रहे अंग्रेज सैनिकों तक की हिम्मत न हुई कि वे मुकाबला करने को आगे आते।
श्री राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी कलकत्ता के पास ही दक्षिणेश्वर में वे बम बनाने का अभ्यास कर रहे थे। एक दिन किसी साथी की जरा-सी असावधानी से एक बम अचानक ब्लास्ट हो गया। इसकी तेज़ धमाकेदार आवाज़ को पुलिस ने सुन लिया और तुरंत ही मौके पर पहुँच कर वहा मौजूद 9 लोगों के साथ राजेन्द्रनाथ को गिरफ्तार कर लिया।
फाँसी के दिन भी सुबह सुबह लाहिड़ी व्यायाम कर रहे थे। जेलर ने पूछा कि मरने के पहले व्यायाम का क्या प्रयोजन है? लाहिड़ी ने निर्वेद भाव से उत्तर दिया “जेलर साब! चूँकि मैं हिन्दू हूँ और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है, अतः अगले जन्म में मैं स्वस्थ शरीर के साथ ही पैदा होना चाहता हूँ ताकि अपने अधूरे कार्यों को पूरा कर देश को स्वतन्त्र करा सकूँ। आज मेरे जीवन का सर्वाधिक गौरवशाली दिवस है तो यह क्रम मैं कैसे तोड़ सकता हूँ?”
आजादी के इस दीवाने ने हँसते-हँसते फाँसी का फन्दा चूमने से पहले वंदे मातरम् की हुंकार भरते हुए कहा था- “मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतन्त्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ।”
यह उद्गार काकोरी ट्रेन लूटकांड के नायक अमर शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी ने गोंडा जेल में 17 दिसंबर 1927 को अपनी फांसी से कुछ समय पूर्व तत्कालीन जेलर से व्यक्त किए थे।
*सभी क्रांतिकारियों की फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की गई थी लेकिन इस महान क्रांतिकारी को जेल से जबरन छुड़ाकर ले जाने के लिए चंद्रशेखर आजाद के गोंडा में आकर कहीं छुप जाने की खुफिया सूचना पर तत्कालीन हुकूमत ने उन्हें नियत तिथि से दो दिन पूर्व ही 17 दिसंबर 1927 को फांसी पर लटका दिया। इनका अंतिम संस्कार जेल से 500 मीटर दूर स्थित टेढ़ी नदी के बूचड़ घाट पर किया गया। यहां उनकी समाधि बनी हुई है।
सौजन्य: इंटरनेट