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जाने भगवान शिव और सावन मास के चमत्कार

न्यूज़ लहर संवाददाता

सभी बारह महीनों का नाम बारह नक्षत्रों पर अधारित है और जिस तरह बारह राशियां होती है उसी तरह एक साल में बारह महीने भी होते हैं।

🌺 श्रावण महीने का नाम श्रवण नक्षत्र पर अधारित है।

💐 जब भी श्रावण मास या श्रवण नक्षत्र का नाम आता है तब श्रवण कुमार की निःस्वार्थ माता – पिता की भक्ति याद आ जाती है।

🐘 श्रवण नक्षत्र के स्वामी चन्द्रदेव और देवता भगवान विष्णु जी हैं।

🦅 जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग धरती मांगा था उस समय श्रवण नक्षत्र था।

♥️ सावन या श्रावण साल का पांचवा महीना होता है और कुंडली का पांचवा भाव प्रेम, संतान, पूर्वपुण्य और ईष्ट देवता का होता है।

🐚 कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन चल रहा था तो उस समय श्रावण मास था और जब मंथन से हलाहल विष निकला और भगवान शिव ने उसे ग्रहण किया तब माता पार्वती ने विष को उनके गले में रोक दिया था जिससे विष उदर तक नहीं पहुंच सका जिससे भगवान शिव नीलकंठ कहलाये लेकिन हलाहल विष गले में रुककर भगवान शिव को पीड़ा देने लगा।

उस पीड़ा से भगवान शिव को बचाने के लिए तीन घटनाये हुई –

1️⃣ चन्द्रदेव जो कि समुद्र मंथन से निकले थे वे भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हुए जिससे भगवान शिव को शीतलता मिले और इसी कारण भगवान शिव को चंद्रशेखर कहा जाता है।

2️⃣ देवताओ ने वर्षा की ताकि भगवान शिव को शीतला मिले इसीलिए सावन मास में भगवान शिव को जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।

3️⃣ उस समय का भगवान शिव का कोई महान भक्त (शायद रावण) कांवर में गंगाजल लेकर आया और भगवान शिव को चढ़ाया जिससे भगवान शिव हलाहल विष से पीड़ामुक्त हुए।

💎 सावन मास में ही मार्कंडेय ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या की थी।

🌀 जिस तरह सतयुग में ब्रह्मा जी का, त्रेतायुग में सूर्यदेव का और द्वापर युग में विष्णु भगवान का अधिपत्य या प्रभाव अधिक है उसी तरह कलियुग में गौरीपति भावगन शिव का विशेष महत्व है।

🌝 भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता है लेकिन अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवयानी एकादशी कहते हैं से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं जिससे सृष्टि के पालन की जिम्मेदारी भगवान शिव पर आ जाती है।

⭐ इसलिए भी सावन मास में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है।

💖 वैसे तो भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है लेकिन कलियुग में भगवान शिव पृथ्वी छोड़ किसी अन्य लोक में चले गए लेकिन सावन महीने में वे अपने ससुराल (हिमालयराज के घर) आते हैं और पूरा सावन मास यहीं व्यतीत करते हैं।

💞 इसलिए सावन मास में कुँवारे हो या शादीशुदा, स्त्री हो या पुरुष सभी भगवान शिव की उपासना कर प्रेम की कामना करते हैं।

💕 सावन मास में नये व्रतों की शुरुआत करना अच्छा माना जाता है।

💘 सावन मास में सोमवार का दिन हो श्रवण या मघा नक्षत्र हो उस दिन कन्याए सोलह सोमवार के व्रत का संकल्प लेकर सोमवार व्रत की शुरुआत करे तो तो भगवान भोलेनाथ शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और सुयोग्य एवं मनोवांछित वर का आशीर्वाद देते हैं।

💝 भगवान शिव को आक, कनेर, बेला, जूही, धतूरा और चमेली के फूल अति प्रिय है साथ में शमी के पत्ते एवं फूल और दूर्वा भी भगवान शिव को अति प्रिय है।

☘️ सबसे अधिक प्रिय है बेलपत्र…..और यदि बेलपत्र पर राम नाम लिख कर शिव जी को चढ़ाया जाय तो भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं।

🌱 भगवान शिव और भगवान विष्णु में अन्तर नहीं करना चाहिए….जो भगवान शिव की पूजा करता है और भगवान विष्णु की निंदा या भगवान विष्णु की पूजा करता है और शिव जी की निंदा उस पर कोई भी प्रसन्न नहीं होता और उसका पतन निश्चित है।

🌹 सावन का महीना प्रेम और भक्ति का है…..प्रेम से भगवान शिव की आराधना करके प्रेम की कामना करिये।

🎯 सावन महीने में शिव जी के जलाभिषेक का अत्याधिक महत्व है।

🦀 भगवान शिव का जल के अलावा भी अन्य द्रव्यों से अभिषेक होता है।

👉 मकान, वाहन या पशु आदि की इच्छा है तो दही से अभिषेक करें।
👉 लक्ष्मी प्राप्ति और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें।
👉 धन में वृद्धि के लिए जल में शहद डालकर अभिषेक करें।
👉 प्रेम में सफलता के लिए भी शहद से रुद्राभिषेक करे।
👉 यदि वर्षा चाहते हैं तो जल से रुद्राभिषेक करें।
👉 रोग और दुःख से छुटकारा चाहते हैं तो कुशा जल से अभिषेक करना चाहिए।
👉 मोक्ष की प्राप्ति के लिए तीर्थ से लाये गये जल से अभिषेक करें।
👉 बीमारी को नष्ट करने के लिए जल में इत्र मिला कर अभिषेक करें।
👉 पुत्र प्राप्ति, रोग शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक करें।
👉 ज्वर ठीक करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें।
👉 सद्बुद्धि और ज्ञानवर्धन के लिए दुग्ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें।
👉 वंश वृद्धि के लिए घी से अभिषेक करना चाहिए।
👉 शत्रु नाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
👉 पापों से मुक्ति चाहते हैं तो शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करें।
👉 जल में इत्र मिलाकर रुद्राभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।

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