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क‍िस्‍सा कारगिल का: याक ढूंढने न‍िकले इस चरवाहे ने दी थी कारगिल में घुसपैठ की सूचना, फिर शुरु हुआ ‘आपरेशन विजय

न्यूज़ लहर संवाददाता
कारगिल दिवस के मौके पर हम हर साल उन जांबाजों की बहादुरों को याद करते हैं, जिन्होंने कारगिल से पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया था।

आज भी उस युद्ध से जुड़ी हर छोटी सी याद भी हमें गर्व गौरव की अनुभूति करा जाती है। हम जवानों के बलिदान को याद करते हैं, उनकी बहादुरी के चर्चे भी करते हैं।

लेकिन उस लड़ाई में एक नाम ऐसा भी था, जिसे युद्ध का प्रमुख नायक होते हुए भी भुला दिया गया है।

वह शख्स है कारगिल क्षेत्र के गोरखुन गांव का शेरपा ताशी नामग्याल। इंडियन आर्मी को कारगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की जानकारी देने वाला वह पहला शख्स था।

याक खोजने गए थे और घुसपैठियों को देख लिया

2 मई 1999 को नामग्याल अपना याक खोजने गया था। बर्फ में उसने कुछ निशान पाए जो याक के नहीं बल्कि इंसान के थे। कुछ दूरी पर उसने पांच-छह लोगों को देखा जो स्थानीय लोगों के लिबास में थे। नामग्याल को उनके घुसपैठी या आतंकी होने का शक हुआ। उसने तुरंत पंजाब बटालियन के हवलदार बलविंदर सिंह को सूचना दी। बलविंदर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाने पर वे नामग्याल के साथ उस जगह गए जहां दुश्मन की गोली का शिकार हो गए।

सही निकला था नामग्याल का शक

इन पांच-छह लोगों को देखकर नामग्याल को लगा कि कुछ तो गड़बड़ होने वाला है। नामग्याल का शक बाद में सही निकला, जब सप्ताह भर में ही कारगिल घुसपैठ के खिलाफ भारतीय सेना को अभियान शुरू करना पड़ा। अभियान करीब 81 दिन चला। 26 जुलाई को हमने घुसपैठियों को पूरी तरह मार भगाया।

सेना ने किया था सम्मान

कारगिल जंग जीतने के बाद सेना ने नामग्याल को 50 हजार रुपए देकर सम्मानित किया। आज भी उन्हें हर महीने पांच हजार रुपए दिए जा रहे हैं। साथ ही राशन भी मुफ्त मिलता है। उनके दो बेटे व दो बेटियां हैं। सेना की सिफारिश पर उनके दूसरे बेटे स्टैंजिन दोर्जे को पुणे स्थित सरहद संस्था ने पढ़ाई के लिए गोद ले रखा है। सरहद संस्था में जम्मू-कश्मीर के करीब 150 बच्चे पढ़ते हैं। इनमें करगिल के 33 छात्र ऐसे भी हैं जिनके माता-पिता करगिल घुसपैठ के दौरान भारतीय जवानों की मदद करने के कारण दुश्मन के निशाने पर आ गये थे।
सौजन्य: इंटरनेट

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