Education

श्रीनाथ विश्वविद्यालय में सातवां अंतरराष्ट्रीय श्रीनाथ हिंदी महोत्सव का हुआ आगाज 

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

झारखंड: सरायकेला खरसावां जिला स्थित आदित्यपुर स्थित श्रीनाथ विश्वविद्यालय में सातवां अंतरराष्ट्रीय श्रीनाथ हिंदी महोत्सव का शुभारंभ किया गया। महोत्सव का शुभारंभ मुख्य अतिथि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी झारखंड अंकेक्षण के निदेशक मुकेश कुमार, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे आदित्यपुर नगर नियम के आयुक्त आलोक कुमार दूबे, नई दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, संस्थापक शंभू महतो और श्रीमती संध्या महतो, कुलाधिपति श्री सुखदेव महतो, कौशिक मिश्रा के हाथों दीप प्रज्वलित कर किया गया।

कुलाधिपति सुखदेव महतो ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हिन्दी हमारी राजभाषा है और यह हमें एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य करती है | प्रत्येक हिन्दुस्तानी की पहचान हिन्दी से है । यह महोत्सव हमारे लिए केवल एक महोत्सव मात्र नहीं है, इससे हमारी भावनायें जुड़ी हुई हैं | हम इस महोत्सव को न केवल अपने परिश्रम से सजाते हैं बल्कि हम इसे भरपूर जीते भी हैं l

 

कुलपति डॉ. गोविंद महतो ने विश्वविद्यालय का परिचय देते हुए कहा कि इस महोत्सव में साहित्य की सरिता प्रवाहित होगी, जिसमें मूर्धन्य विद्वान साहित्यकार एवं विद्यार्थियों का सहयोग महोत्सव को मिलेगा l श्रीनाथ विश्वविद्यालय का आरंभ संध्या शंभू एजुकेशनल ट्रस्ट के द्वारा इसका बीजारोपण किया गया था l वर्तमान समय में विश्वविद्यालय पी.सी.आई. , एन.सी.टी.ई. से संबद्धता प्राप्त कर चुका है l यहां अलग-अलग तरह के कई कोर्स चलाई जा रहे हैं l साथ ही कई और कोर्स आरंभ होने वाले हैं l विश्वविद्यालय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एम.ओ.यू. भी कर रहा है l हिंदी हमारी राजभाषा है और हिंदुस्तानी इस भाषा का डंका देश-विदेश में बजा रहे हैं।

 

उद्घाटन के पश्चात चिंतन-मनन सत्र का आयोजन किया गया, जिसके समन्वयक नर्मदेश्वर पाठक एवं डॉ. भाव्या भूषण थी । सत्र का विषय था ‘हिंदी ज्ञान भाषा बनकर ही बच सकती है’ l इस चिंतन मनन सत्र में गणमान्य अतिथियों से हिंदी से संबंधित कई प्रश्न समन्वयको के द्वारा पूछे गए l वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव से पहला प्रश्न किया गया कि क्या ऐसा करें कि हिंदी ज्ञान की भाषा बन जाए, साथ ही आज हिंदी के ऊपर अंग्रेजी रानी महारानी बनी हुई है और हिंदी को उसके आगे कमतर समझा जा रहा है l इस पर राहुल देव ने जवाब देते हुए कहा कि हिंदी को रानी या महारानी बनाने की जरूरत नहीं है l कोई भी भाषा किसी भी भाषा पर अपना आधिपत्य नहीं जमा सकती है l हमें ही इस क्रमबद्धता को छोड़ना होगा, जहां हम किसी एक भाषा को ऊपर रखते हैं और दूसरी भाषा को नीचे रखते हैं l वस्तुतः सभी भाषाएं समान है l सभी भाषा ज्ञान भाषा हो सकती है, जिस भी भाषा में हम ज्ञान ग्रहण करते हैं वह ज्ञान भाषा है।

दूसरा प्रश्न राहुल देव से किया गया l कुछ शब्द हिंदी के ऐसे हैं जो बहुत कठिन हैं, उसे आसान कैसे बनाया जाए ? इस पर राहुल देव जी ने जवाब दिया- हमें तो हिंदी सब दिन सरल लगी थी l मैं खुद हिंदी माध्यम से पढ़ा हूं और मुझे हिंदी भाषा को लिखने-पढ़ने में कभी कोई असुविधा का अनुभव नहीं हुआ l किसी भी भाषा को अभ्यास के द्वारा सरल बनाया जा सकता है। तीसरा प्रश्न मुकेश कुमार से डॉ. भाव्य भूषण ने किया और पूछा कि ज्ञान भाषा तो हिंदी बन जाएगी लेकिन क्या हिंदी को बचाने के लिए ज्ञान भाषा ही बनाना आवश्यक है l उसे क्यों आम भाषा नहीं बनना चाहिए ? इस पर मुकेश कुमार ने उत्तर देते हुए कहा कि हमें भाषा को अलंकृत करने की जरूरत नहीं है l वह अपना रास्ता खुद बनाती चलती है l भाषा के लिए वस्तुतः सामाजिक स्वीकृति अत्यंत आवश्यक है l नर्मदेश्वर पाठक ने मुकेश से पुनः सवाल करते हुए पूछा कि हमें हिंदी को वह स्थान देने में क्या दिक्कत है, जिसकी वह अधिकारी है ? इस पर मुकेश कुमार ने जवाब देते हुए कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि हिंदी को उसकी जगह मिलनी ही चाहिए l हिंदी हमारे मन के भीतर से आती है l हम प्रेम या अन्य कोई भावनाओं को हिंदी में ही प्रकट करते हैं l हिंदी जरूर तरक्की कर आगे जाएगी मुझे लगता है l हिंदी को बचाने की आवश्यकता नहीं है l हिंदी अपना मार्ग खुद तय कर लेगी और हमारी नई पीढ़ी इसे आगे लेकर जाएगी l पाठक ने आलोक कुमार दुबे आदित्यपुर नगर आयुक्त से प्रश्न करते हुए पूछा कि आप सरकारी कर्मचारी हैं l आम जनता तक हिंदी की पहुंच बनाने के लिए क्या सरकारी प्रयास हो रहे हैं ? इस पर श्री आलोक कुमार दूबे ने जवाब देते हुए कहा कि सरकारी तंत्र जनता के लिए काम करती है l कुछ तकनीकी शब्द है, जिसे अनुवाद करना कठिन है l मैं दक्षिण में भी देखा हूं, लोग हिंदी आसानी से बोलते हैं l हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है l यह स्वतः ही आगे बढ़ रही है l राहुल देव ने इसी पर आगे अपने विचार रखते हुए कहा कि ज्ञान भाषा एक होती है l बोल चाल की भाषा अलग होती है l यदि एक इंजीनियर को कानून की व्याख्या करने दे तो वह नहीं कर पाएगा l एक ही भाषा के अलग-अलग रूप हैं l ज्ञान भाषा और आम भाषा । पाठक ने इस पर राहुल देव से प्रश्न करते हुए पूछा कि अंग्रेजी को लेकर जो एक झिझक है लोगों में, वह कैसे दूर करें ? राहुल देव ने इस पर जवाब दिया कि हिन्दी को लेकर मेरी सोच भावनात्मक नहीं है बल्कि मेरी सोच यथार्थवादी है l मैं सबसे कहता हूं कि आज के समय में सभी को अंग्रेजी आनी चाहिए l प्रत्येक छात्र को अंग्रेजी का ज्ञान होना ही चाहिए l हर व्यक्ति जिस भाषा को सीखना चाहता है, वह सीख सकता है l अंग्रेजी सीखना वैसे भी भारतीयों के लिए आसान है, क्योंकि यह 200 वर्षों से हमारे साथ है l हिंदी हमारी मातृभाषा नहीं है बल्कि यह हमारी प्रथम भाषा है । डॉ. भूषण ने अगला सवाल राहुल देव से किया कि यदि हमारे देश में चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, तकनीक को राजभाषा में ही संचालित करें तो, क्या इससे हिंदी को प्रोत्साहन मिलेगा ? इस पर राहुल देव जी ने कहा कि ऐसा निर्णय लिया गया है कि अब तकनीकी, प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा की पुस्तकें भी हिंदी भाषा में होगी और इस क्षेत्र में अभी काम हो भी रहा है l भाषा जिंदा रखने की एक ही शर्त है उसे उपयोग में लाया जाए अन्यथा भाषा मर जाती है l यदि हम मां को मदर कह रहे हैं तो हम अपनी भाषा के ऊपर अन्याय कर रहे हैं l आज हमारी पीढ़ी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रही है, आने वाली पीढ़ी भी नर्सरी से अंग्रेजी ही पढेगी तब यह हिंदी का संकट बनकर उभरेगी, जो आज दुनिया की तीसरी बड़ी भाषा है । अंत में कुछ शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने भी चिंतन मनन सत्र में अपने प्रश्न रखें जिनका जवाब गणमान्य अतिथियों ने दिया।

 

7 वा अन्तर्राष्ट्रीय श्रीनाथ हिन्दी महोत्सव के प्रथम दिवस की प्रतियोगिताएं – हास्य कवि सम्मेलन, प्रश्नोत्तरी (प्रथम चरण), दीवार सज्जा, मुद्दे हमारे विचार आपके, मुखड़े पर मुखड़़ा, लिखो कहानी, संपादकीय लेखन, व्यक्तित्व झांकी इत्यादि थी l इन प्रतियोगिताओं के निर्णायक दीपक वर्मा ‘दीप’, श्रीमती सुधा गायल, डॉ. रजनी शर्मा चन्दा, उत्तम मल्लीक, डॉ. क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मुकुल खण्डेलवाल, संदीप सावर्ण, दशरथ हासदा, संतोष महतो, मोहम्मद सरताज आलम, संगीता झा, सुमन झा, अर्पणा संत सिंह इत्यादि थे। आज आए हुए अतिथि डॉ. सुनिल केडिया, डॉ. रितिका केडिया, कोल्हान विश्वविद्यालय के सी.सी.डी.सी. डॉ. मनोज कुमार महापात्र, फार्मेसी काउंसिल ऑफ़ इंडिया के कार्यकारी सदस्य धर्मेन्द्र सिंह, शिक्षक प्रतिनिधी के रूप में डॉ. शालीग्राम मिश्र, डॉ. आर.आर. राकेश, डॉ. सुखनंदन सिंह इत्यादि उपस्थित थे।

 

विश्वविद्यालय के कुलाधिपति सुखदेव महतो ने गणमान्य अतिथियों एवं निर्णायकों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया l यह जानकारी

श्रीनाथ विश्वविद्यालय मीडिया प्रभारी

रचना रश्मि ने दी।

Related Posts