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टीएसएफ ने नोवामुंंड़ी, जगन्नाथपुर प्रखंड एवं काटामाटी क्षेत्र के किसानों को अजोला व अजोला बेड का किया वितरण

 

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड : पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित टाटा स्टील फाउंडेशन, नोवामुंडी के कृषि विभाग की ओर से नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत महुदी, जामपानी, नोवामुंडी बस्ती, पोखरपी, उदाजो, जेटेया आदि 17 गांव के 22 किसानों, जगन्नाथपुर प्रखंड के अंतर्गत गितिलपी, बनाईकेला, के 2 किसान और कटामाटी क्षेत्र के अंतर्गत रामचंद्रपुर, पुटुगांव, नया कृष्णापुर, महादेवनासा आदि के 7 गांव से 8 किसानों को प्रायोगिक आधार पर अजोला की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु अजोला और अजोला बेड का वितरण किया गया। नोवामुंडी और काटामाटी क्षेत्र में टीएसएफ का कृषि विभाग अजोला की खेती के माध्यम से पशुधन चारे के एक प्रमुख उप-उत्पाद को बढ़ावा दे रहा है। टीएफएफ का मुख्य उद्देश्य है कि सभी कृषि और पशुपालक किसान इन 30 किसानों के माध्यम से अजोला की खेती और उसके फ़ायदे के बारे में जानकारी प्राप्त करें और भविष्य में सभी किसान इसकी खेती कर के अपने आय को बढ़ा सकें। दूसरा मुख्य उद्देश्य इसकी खेती को बढ़ावा देने का है। साथ ही किसान अजोला की खेती करके कृषि और पशुपालन क्षेत्र में सही से इसका उपयोग कर सकें और अनेक तरह से अजोला का लाभ प्राप्त करें। अजोला शब्द सुनकर आपके मन में कहीं सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर ये अजोला होता क्या है और इसकी खेती करने से कैसे किसानों और पशुपालको के लिए उपयोगी हो सकता है? आइए आपको बताते हैं इसकी खेती और प्रयोग के बारे में।
क्या है, अजोला ?
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार,’ अजोला’ समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला एक जलीय फर्न है। ये सेल्विनिएसी प्रजाति का होता है। फर्न पानी पर एक हरे रंग की परत जैसा दिखता है | इस फर्न के निचले भाग में सिम्बोइंट के रूप में ब्लू ग्रीन एल्गी सयानोबैक्टीरिया पाया जाता है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को परिवर्तित करता है। इसकी नाइट्रोजन को परिवर्तित करने की दर लगभग 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर होती है। ये नम मिट्टी, खाइयों और तालाबों में पाया जा सकता है और यह एक अत्यधिक पौधा है। यदि परिस्थितयां सही हो तो यह 10–15 दिनों में अपना बायोमास दोगुना कर देता है। अजोला पोषण की खान है। इसमें प्रोटीन (25%-35%), कैल्शियम (67 मिलीग्राम/100 ग्राम) और लौह (7.3 मिली ग्राम/ 100 ग्राम) बहुतायत में पाया जाता है। शोधों से पता चला है कि बेहतर घास मानी जानी वाली बर्सियम, लूसर्न और अलसंडा पौधों की तुलना में बेहेतर पोषण प्रदान करती है।
अजोला के फ़ायदे अनेक :–
(1) चावल की खेती में जैव-उर्वरक के रूप में अजोला : अजोला की खेती धान के खेत में या तो मोनोक्रॉप या इंटरक्रॉप के रूप में की जाती है और मिट्टी में ह्यूमस और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए इसे मिट्टी/मिट्टी में मिलाया जाता है। एजोला पर्याप्त दर पर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है। यह चावल के खेत में हरी खाद सह जैव उर्वरक के रूप में कार्य करता है और मिट्टी की नाइट्रोजन को 50-60 किलोग्राम/हेक्टेयर तक बढ़ाता है। और चावल की फसल की 30-35 किलोग्राम नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता को भी कम करता है।
(2) पशुधन के लिए पोषक पूरक: अजोला का उपयोग मवेशी, बकरी, सूअर, खरगोश, मुर्गियां, बत्तख और मछली जैसे विभिन्न जानवरों के लिए भोजन के पूरक के रूप में किया जाता है।
(3) लवणीय मिट्टी का सुधार: अजोला नमक के प्रति अपेक्षाकृत संवेदनशील है। लगातार दो वर्षों की अवधि के लिए लवणीय वातावरण में खेती करने से नमक की मात्रा कम हो जाती है और अम्लीय मिट्टी की विद्युत चालकता, पीएच भी कम हो जाती है और मिट्टी में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है।
(4) मिट्टी के भौतिक-रासायनिक गुणों में सुधार: अजोला का उपयोग मिट्टी में कुल नाइट्रोजन, कार्बनिक कार्बन और उपलब्ध फास्फोरस को बढ़ाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
(5) बायोरेमेडिएशन: एजोला प्रदूषित पानी से भारी धातुओं, लोहा और तांबे को हटा देता है। कम सांद्रता वाले प्रदूषकों को तालाबों के माध्यम से प्रवाहित करके उपचारित किया जा सकता है और कृषि प्रयोजनों के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है। एजोला प्रदूषकों या सीवेज जल से सीधे तांबा, कैडमियम, निकल, सीसा और पोषक तत्वों जैसे धातुओं को केंद्रित करने की उल्लेखनीय क्षमता प्रदर्शित करता है।
(6) मच्छर प्रतिरोधी: एजोला का उपयोग मच्छरों के नियंत्रण में भी किया जा सकता है, पानी की सतह पर एक मोटी एजोला मैट प्रजनन और वयस्क उद्भव को रोक सकती है।
(7) खरपतवार नियंत्रण: एजोला खरपतवार की वृद्धि को नियंत्रित करता है और खरपतवारों की कुल मात्रा को काफी कम कर देता है; विशेष रूप से प्रमुख खरपतवार मोनोकोरिया वेजिनेलिस , हालांकि घास और बाड़ों को हमेशा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
(8) बायोगैस उत्पादन: अजोला (या अजोला और चावल के भूसे का मिश्रण) के अवायवीय किण्वन के परिणाम स्वरूप मीथेन गैस का उत्पादन होता है। जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है और शेष अपशिष्ट का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जा सकता है। अजोला जैविक संसधनो में से एक है, जिसका उपयोग बिना अधिक श्रम और लागत के आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ के लिए कृषि, पशुधन और जलीय कृषि क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में किया जा सकता है। यह कृषि, पशुधन और जलीय कृषि क्षेत्रों में संभावित उर्वरक और चारा संसाधन के रूप में अच्छी तरह से प्रलेखित है। अजोला की इतनी सारी गुणकारी उपयोग के कारण टीएसएफ के कृषि विभाग ने भी किसानों के बीच अजोला की खेती को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है ताकि किसान हर क्षेत्र जैसे कि कृषि, पशुधन और जलीय कृषि में सही से इसका उपयोग कर सके। ख़ास कर पशु चारा के तौर पर। अगर 17 गांव के 30 किसान अजोला को खेती में सफलता प्राप्त करेगी तो आगे चलकर टीएसएफ बड़े पैमाने में इसकी खेती को प्रोत्साहित करेंगी। ताकि इस संस्था से जुड़े हर किसान अजोला को खेती कर के अनेक प्रकार से लाभ प्राप्त कर सकें।

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