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बैसाखी 2024 : 13 अप्रैल, जानें इस दिन से जुड़े रिवाज 

 

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

 

नई दिल्ली:सिख संप्रदाय में इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में मनाते हैं। इस दिन गुरुद्वारों को बड़ी ही चमकदार रोशनियों तथा फूलों से सजाने के साथ-साथ भजन कीर्तन का मांगलिक कार्यक्रम भी रखा जाता है। सिख समुदाय के लोग एक दूसरे को नए वर्ष की बधाई देते हैं। सभी बैसाखी का पावन पर्व बड़ी ही धूमधाम तथा हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं।

बैसाखी का त्योहार सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक तीनों ही दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह पवित्र पर्व उन तीन त्योहारों में से एक है जिन्हें सिखों के तृतीय गुरु, गुरू अमरदास द्वारा मनाया गया था। इसके अलावा बैसाखी के त्यौहार को फसल के मौसम का अंतिम प्रतीक माना जाता है। जो कृषक वर्ग के लिए विशेष रूप से समृद्धि का समय होता है। यह पावन पर्व मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

दरअसल वैशाख माह तक रबी फसल पूर्ण रूप से पक जाती है और इसके साथ ही इसकी कटाई प्रारंभ कर दी जाती है। ऐसे में इस दिन सुरक्षित रूप से फसल कटकर घर आ जाने की खुशी में लोग भगवान को धन्यवाद देते हैं और विधि विधान से अनाज की पूजा करते हैं। इसी को बिहार में सतुआन के नाम से जाना जाता है। इस दिन बिहार में सत्तू खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

 

 

 

*मेष संक्रान्ति शनिवार, अप्रैल 13, 2024 को*

 

*बैसाखी से जुड़ी पौराणिक मान्यताएँ*

 

सिख समुदाय के लोग बैसाखी के पावन पर्व को नए वर्ष के तौर पर मनाते हैं। इस पर्व के मनाने की पीछे एक खास मान्यता है कि 13 अप्रैल 1699 को सिख पंथ के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है। इस दिन विशेष विधि विधान से भगवान सूर्य देव तथा लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्चना की जाती है जिसे बेहद ही शुभ माना जाता है। इससे सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्यवान होते हैं।

*कैसे मनाते हैं बैसाखी*

 

सिख समुदाय के लोग बैसाखी के पावन पर्व को बड़े ही धूमधाम तथा हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को दूध से शुद्ध किया जाता है। इसके पश्चात पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। इस दौरान अपने शरीर की शुद्धता तथा हाथों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। तत्पश्चात् ही पवित्र किताब को पढ़ा जाता है। इस दौरान संपूर्ण अनुयायी बड़े ही ध्यानपूर्वक गुरु का प्रवचन सुनते हैं। बैसाखी के पावन पर्व के दिन श्रद्धालुओं के लिए अमृत भी तैयार किया जाता है। जो बाद में सभी को प्रसादी स्वरूप दिया जाता है। सिख समुदाय की विशेष परंपरा के अनुसार अनुयायी पंक्ति में लगकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं। फिर अरदास के पश्चात गुरु को प्रसादी का भोग लगाकर संपूर्ण अनुयायी गण में प्रसाद बाँटा जाता है।

 

*बैसाकि के दिन किए जाते है अनेकों उपाय*

 

बैसाखी के पावन पर्व पर भगवान विष्णु नारायण की पूजा अर्चना की जाती है तथा उनके मंत्रों का विशेष विधि विधान से जाप किया जाता है। यह माना जाता है कि ऐसा करने पर प्रार्थी को बहुत ही लाभ मिलता है। इस दौरान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्य देव का आशीर्वाद भी लिया जाता है और सभी आदित्य स्तोत्र पाठ का जाप करते हैं।

 

*नोट:* यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

(साभार)

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