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मेघाहातुबुरु खदान में लौह अयस्क खत्म, सेल के स्टील प्लांट में भेजा जा रहा लो ग्रेट का अयस्क        चिड़िया खदान का विस्तारीकरण योजना फिलहाल असंभव है —डॉ राकेश कुमार सिंह 

 

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

 

झारखंड: पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित महारत्न कंपनियों में शुमार सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु खदान की साउथ एवं सेंट्रल ब्लॉक के लीज को अब तक स्वीकृति नहीं मिली है। इस कारण दोनों खदानों का अस्तित्व खतरे में पड़ा हुआ है। मेघाहातुबुरु खदान में तो अब लौह अयस्क ही नहीं बचा है। जहां-तहां से लो ग्रेड का अयस्क उठाकर वह काफी कम मात्रा में सेल की स्टील प्लांटों को भेज रही है। लीज का मामला पिछले लगभग 10 वर्षों से लटकने की मुख्य वजह वन्यजीव संरक्षण प्लान से जुड़ा मामला है।

उक्त प्लान सारंडा जंगल में निवास करने वाले वन्यप्राणियों की सुरक्षा व संरक्षण से संबंधित है। कई बार यह प्लान बनाकर यहां से झारखंड सरकार और केंद्र सरकार को भेजा जाता रहा है। लेकिन हर बार कुछ तकनीकी खामियों की वजह से फाइल को सुधार हेतु वापस भेज दिया जाता है। इस बार भी इस प्लान से जुड़ी फाइल दिल्ली से वापस रांची संबंधित विभाग को भेज दी गई है। दोनों खदानों में लौह अयस्क की भारी कमी की वजह से खदान प्रबंधन ने अपना वार्षिक उत्पादन लक्ष्य घटा दिया है। सेल, मेघाहातुबुरु के आधिकारिक सूत्रों से के अनुसार यहां वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 4 मिलियन टन से घटाकर 2.5 कर दिया गया है।

यहां काम अधिक नहीं होने की वजह से मेघाहातुबुरु खदान से 100-100 टन क्षमता का दो हौलपैक डम्फर किरीबुरु खदान में भेजा जा रहा है। हालांकि इसे सामान्य प्रक्रिया बतायी जा रही है। दूसरी तरफ सेल की मनोहरपुर लौह अयस्क खदान (चिड़िया खदान) में लौह अयस्क का भंडार सबसे अधिक है, लेकिन अस्तित्व भी खतरे में है। वन्यप्राणियों के विशेषज्ञ डॉ राकेश कुमार सिंह (दिल्ली) से सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि चिड़िया खदान का विस्तारीकरण योजना फिलहाल असंभव है। चिड़िया खदान में एक छोटे से ब्लॉक में प्रारम्भ से खनन कार्य मैनुअल करने की अनुमति मिली थी। वहां अभी भी छोटे स्तर पर कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि चिड़िया खदान में बडे़ पैमाने पर खनन शुरू नहीं हो सकता है, क्योंकि चिड़िया खदान का हिस्सा वन्यप्राणियों का हॉट स्पॉट क्षेत्र में है। चिड़िया खदान की पहाड़ियों को तोड़ना मतलब सारंडा को खत्म करने के समान है। उन्होंने कहा कि सारंडा के करमपदा व घाटकुड़ी जोन में अभी भी बडे़ पैमाने पर लौह अयस्क भरा पड़ा है। पहले उस अयस्क का खनन कर खत्म करने के बाद ही दूसरी ओर बढ़ने का प्रयास कर सकते हैं। खदान प्रबंधन जंगल के हर हिस्से में लौह अयस्क का ब्लॉक का लीज लेना चाहती है, जो कहीं से भी उचित नहीं है। अर्थात् जंगल के सभी क्षेत्रों में एक साथ खनन होने लगे तो सारंडा जैसे जंगल का क्या हाल होगा? जंगल का विनाश के साथ-साथ प्रदूषण व पर्यावरण की स्थिति कैसी होगी, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।

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