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मुंशी प्रेमचंद जी की 10 चर्चित कहानियों का नाट्य रूपांतरण: जमशेदपुर में पुस्तक का विमोचन

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

झारखण्ड: पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित जमशेदपुर में आंध्रा एसोसिएशन प्रेक्षागृह में कदम, जमशेदपुर की नाट्य संस्था जयालक्ष्मी नाट्य कला मंदिरम के निर्देशक और रंगकर्मी ए बाबूराव द्वारा कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 10 चर्चित कहानियों का नाट्य रूपांतरण का विमोचन किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शहर के कई जाने-माने अभिनेता, नाट्य निर्देशक, कला प्रेमी और समाज सेवियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलित करके किया गया, जिसमें सभी अतिथियों का स्वागत पौधों देकर किया गया। ए बाबूराव ने अपने संबोधन में कहा, “यह मेरे द्वारा लिखी गई इस तरह की पहली पुस्तक है, जिसमें मैंने मुंशी प्रेमचंद जी की चर्चित 10 कहानियों का नाट्य रूपांतरण किया है। मुझे इस ऐतिहासिक दिन पर आपके साथ अपनी खुशी बांटने का गर्व है।”

उन्होंने आगे बताया कि कोरोना काल के दौरान जब वे अस्वस्थ थे, तब उनके अनुज प्रकाश कुमार गुप्ता ने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपनी काबिलियत पर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा, “मैंने उनकी बातों से प्रेरित होकर यह जोखिम उठाया और प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य रूपांतरण किया।”

पुस्तक विमोचन के बाद, डॉ. सी भास्कर राव, नाट्य निर्देशक कृष्ण सिन्हा, डॉ. राजेश कुमार पांडे, शाहनवाज आलम, चंद्रदेव, अनवर आबिद, प्रशांत सिंह, अंजनी पांडे, गोविंद माधव शरण, संस्था के मुख्य संरक्षक विनीत शाह, विनोद कोउंटिया, संजीव कुमार चौधरी, एमपी राव, नागेश राव, के श्रीनिवासन राव और प्रकाश कुमार गुप्ता ने बाबूराव के कार्यों की प्रशंसा की और उन्हें आगे के लिए शुभकामनाएं दीं।

जयालक्ष्मी नाट्य कला मंदिरम इस वर्ष अपने 29वें वर्षगांठ का जश्न मना रहा है। कार्यक्रम में गणेश वंदना से प्रेरणा कुमारी ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके अलावा, मुंशी प्रेमचंद की कहानी “घासवाली” का नाट्य रूपांतरण भी प्रस्तुत किया गया, जिसका पूर्ण नाटक दिसंबर में होने वाली 25वीं अखिल भारतीय अंतर विद्यालय हिंदी नाट्य, लोक नृत्य, गीत एवं वाद्य यंत्र प्रतियोगिता 2024 में मंचित किया जाएगा।

 

कार्यक्रम का समापन कुमारी प्रियंका दत्ता (तबला वादिका) के मधुर स्वर से हुआ, जिन्होंने सभी अतिथियों का प्यार और आशीर्वाद प्राप्त किया। धन्यवाद ज्ञापन ए बाबूराव ने किया।

 

इस कार्यक्रम ने न केवल मुंशी प्रेमचंद की कहानियों को जीवित किया, बल्कि रंगमंच के प्रति शहर के लोगों की रुचि को भी बढ़ाया।

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