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सरकारी वादे पूरे नहीं हुए, पूर्व सरेंडर नक्सली प्रताप सिंह ने की आत्महत्या

न्यूज़ लहर संवाददाता
*रांची।* 10 सितंबर 2010 को, तत्कालीन डीजीपी स्वर्गीय नियाज अहमद के समक्ष पी एल एफ आई एरिया कमांडर मंटू साहू और सहयोगी अजय मुंडा के साथ प्रताप सिंह ने सरकार के आश्वासन और पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण किया था। उस समय, तीनों नक्सलियों को सरकार द्वारा पुनर्वास के तहत सरकारी नौकरी, आवास, और बच्चों के उज्जवल भविष्य हेतु शिक्षा की व्यवस्था का वादा किया गया था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की सरकार ने तीनों नक्सलियों को सहायता स्वरूप 3 लाख रुपये प्रदान किए थे। लेकिन 13 वर्षों बाद भी, प्रताप सिंह और उनके साथ आत्मसमर्पण किए गए सदस्यों को कोई सुविधा नहीं मिली। सरकार ने कभी उनकी हालात जानने की कोशिश नहीं की और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया।

इस लंबे समय तक कोई सहयोग न मिलने के कारण प्रताप की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। सरकारी आश्वासन पूरे होने की उम्मीद से निराश होकर अंत में पूर्व नक्सली प्रताप सिंह ने कीटनाशक दवा खाकर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली।

पड़ोसियों के अनुसार, घटना के समय उसकी पत्नी ललिता देवी अपने बच्चों मानसी (8 वर्ष) और मनीष (3 वर्ष) के साथ मायके गई हुई थी। घटना के दिन दोपहर को पड़ोसियों द्वारा कुछ अनहोनी की सूचना मिलने पर ललिता देवी वापस घर आईं, तब पता चला कि प्रताप दिनभर घर से नहीं निकला था। जब पड़ोसियों को शंका हुई, तो उन्होंने पुलिस को सूचित किया।

पुलिस जब कमरे को खोलकर अंदर गई, तो प्रताप मृत मिले। कमरे से कीटनाशक दवा भी बरामद हुई। पुलिस ने लाश को अपने कब्जे में ले लिया है और तहकीकात जारी है।

प्रताप सिंह की विधवा ललिता देवी ने सरकार द्वारा ठगे जाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण करने के बाद उनके लिए कुछ नहीं किया गया, जिसका यह दुष्परिणाम है।

यह घटना न केवल एक व्यक्ति की दुखद कहानी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सरकारी वादे कितने महत्वपूर्ण होते हैं और कैसे उनकी अनुपालना न होने पर लोगों की जिंदगी पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

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