लोहरदगा का डहरबाटी गांव: खौफ और संघर्ष का जीवन…. विकास की राह में बाधाएं और निराशा
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:लोहरदगा जिले के डहरबाटी गांव में रहने वाले लोग आज भी एक कठिन और संघर्षपूर्ण जीवन जीने को विवश हैं। यह गांव, जो कि किस्को प्रखंड के अंतर्गत आता है, न केवल नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है, बल्कि यहां के निवासी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। आजादी के 70 वर्षों बाद भी, केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाएं यहां के लोगों तक नहीं पहुंच पाई हैं।
सरकारी योजनाओं का अभाव
गांव के लोग आज भी कंदमूल खाकर और दूषित पानी पीकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यहां न तो आवागमन के लिए सड़कें हैं और न ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि पेयजल की उपलब्धता के लिए जलमीनार, चापानल या कुएं जैसे साधन भी एक सपना बनकर रह गए हैं। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से नदी के दूषित पानी को पाइपलाइन के जरिए अपने घरों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, लेकिन यह पानी भी उनके लिए स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकता है।
शिक्षा का अंधकार
डहरबाटी गांव के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए रोजाना पगडंडी के सहारे किस्को और जिला मुख्यालय जाते हैं। हालांकि, इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। कई बच्चियां परिवारों में काम करके शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
गांव में बीमार होने पर लोगों को इलाज के लिए केवल खाट का सहारा लेना पड़ता है। इस बदलते भारत में, जहां चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, वहां डहरबाटी के लोग अपनी समस्याओं को लेकर नेताओं और प्रशासनिक तंत्र को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
बिजली की कमी
पाखर पठारी क्षेत्र के अन्य गांवों की तरह, डहरबाटी भी बिजली की समस्या से जूझ रहा है। यहां के लोगों का कहना है कि बिजली व्यवस्था उनके लिए एक सपना बन चुकी है। रात के अंधेरे में महिलाओं और बच्चों को घर से बाहर निकलना खतरनाक हो जाता है।
कंपनी की अनदेखी
गांव के लोग लंबे समय से क्षेत्र में खनन कर रही बाक्साइट कंपनी से अपनी समस्याओं का समाधान मांग रहे हैं, लेकिन कंपनी उनकी छोटी-छोटी मांगों को भी नजरअंदाज कर रही है। इससे ग्रामीणों में काफी आक्रोश है।
जनसभा और भविष्य की उम्मीदें
हाल ही में, समाजसेवी सुखनाथ नगेसिया की अध्यक्षता में एक आम सभा आयोजित की गई, जिसमें गांव की समस्याओं को सूचीबद्ध किया गया। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि वे अब केवल वोटर बनकर नहीं रहना चाहते; वे विकास की बीड़ा उठाने वाले नेता का चयन करना चाहते हैं।
हालांकि, पिछले चुनावों में दिए गए बड़े-बड़े आश्वासनों का कोई असर नहीं दिखा है। वर्तमान सांसद सुखदेव भगत और विधायक डॉ. रामेश्वर उरांव से लोगों को उम्मीदें हैं, लेकिन विकास की वास्तविकता क्या होगी, यह आने वाला समय ही बताएगा।
निष्कर्ष
डहरबाटी गांव की स्थिति यह दर्शाती है कि भारत में विकास की कहानी अभी अधूरी है। यहां के लोगों को उनके अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वे एक सम्मानजनक जीवन जी सकें। लोकतंत्र के सिपाहियों को इनकी समस्याओं को दूर करने के लिए आगे आना होगा, तभी हम इस देश के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास सुनिश्चित कर सकेंगे।