डायन और बलि प्रथा का अंत: अंधविश्वास से ऊपर उठकर आत्मबल और भक्ति को अपनाने का आह्वान
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड: आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से पटमदा के गेंगाड़ा बस्ती में तीन स्थानों पर तत्व सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों के बीच 200 फलदार पौधे वितरित किए गए। सभा को संबोधित करते हुए सुनील आनंद ने डायन प्रथा और बलि प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त करने के लिए आत्मबल और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाने का आह्वान किया।
सुनील आनंद ने कहा कि डायन प्रथा और बलि प्रथा समाज में अंधविश्वास और मानसिक कमजोरी का परिणाम हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि मनुष्य के भीतर परमात्मा का वास होता है, और उन्हें आध्यात्मिक क्रियाओं के माध्यम से जानने से मन मजबूत होता है। आत्मबल और संकल्पशक्ति के विकास से अंधविश्वास और झूठी मान्यताओं को समाप्त किया जा सकता है।
उन्होंने बलि प्रथा को मानवता के खिलाफ बताते हुए कहा कि भगवान किसी भी जीव की बलि से प्रसन्न नहीं होते। यह प्रथा समाज के अर्ध-विकसित अवस्था की मानसिक बीमारी का प्रतीक है। आज जब समाज विकसित हो रहा है, तो इस तरह की कुरीतियों को त्यागने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सृष्टि परम पुरुष की मानसिक परिकल्पना है और भगवान अपनी ही बनाई सृष्टि को नष्ट नहीं करना चाहते।
सभा में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ओझा-गुनी और झाड़-फूंक जैसी प्रथाएं केवल अंधविश्वास हैं, जिनसे मनुष्य को बचना चाहिए। बीमारियों और विषैले जीवों के काटने पर झाड़-फूंक की जगह सरकारी चिकित्सा सेवाओं का सहारा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओझा-गुनी के डर से लोगों में भय व्याप्त होता है, जिससे वे आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर होते जाते हैं।
सुनील आनंद ने कहा कि तंत्र-मंत्र के नाम पर किसी को नुकसान पहुंचाना संभव नहीं है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि अगर ओझा-गुनी में इतनी शक्ति होती, तो उन्हें देश की सीमा पर बैठा दिया जाता। उन्होंने यह भी कहा कि परम पुरुष कल्याणमय सत्ता हैं, और उनकी भक्ति से जीवन जीने की शक्ति और समस्याओं से लड़ने की प्रेरणा मिलती है।
सभा में उपस्थित लोगों से अपील की गई कि वे डायन प्रथा और बलि प्रथा जैसी कुरीतियों को पूरी तरह त्याग दें।