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श्रेय और प्रेय: जीवन की दिशा तय करने वाले दो मार्ग

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

झारखंड।जमशेदपुर में आनंद मार्ग जागृति गदरा में आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार के तीसरे दिन आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने “श्रेय और प्रेय” विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ये दोनों मानव जीवन के दो प्रमुख पहलू हैं, जो हमारे विचार, कार्य और जीवन की दिशा को निर्धारित करते हैं।

श्रेय: आत्मिक उत्थान का मार्ग

 

आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने कहा कि श्रेय वह मार्ग है जो आत्मिक उत्थान और अनंत सुख की ओर ले जाता है। यह व्यक्ति को उसके वास्तविक जीवन उद्देश्य को पहचानने में सहायक होता है और उसे उच्चतर लक्ष्य की दिशा में प्रेरित करता है।

श्रेय का अनुसरण करने वाला व्यक्ति समाज कल्याण के कार्यों में लीन रहता है, जिससे उसका आत्मिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समृद्ध होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति श्रेय को अपनाते हैं, वे न केवल अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं, बल्कि समाज और सम्पूर्ण मानवता के लिए भी एक सशक्त योगदान देते हैं। यह मार्ग आत्म-नियंत्रण, तपस्या और त्याग की मांग करता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को शांति, संतोष और सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।

प्रेय: तात्कालिक सुख का भ्रम

 

इसके विपरीत, प्रेय वह मार्ग है, जो तात्कालिक सुख और भौतिक लाभ प्रदान करता है। लेकिन इससे आत्मिक संतोष या स्थायी सुख प्राप्त नहीं होता। यह व्यक्ति को अस्थिरता और भौतिकता के जाल में फंसा देता है, जिससे अंततः मानसिक अशांति और अधूरी इच्छाओं की उत्पत्ति होती है।

श्रेय का चयन ही जीवन का सच्चा अर्थ

 

आचार्य ने जोर देकर कहा कि जीवन में चयन हमेशा हमारे हाथ में होता है। यदि हम श्रेय का मार्ग अपनाते हैं, तो न केवल स्वयं को शुद्ध कर सकते हैं बल्कि समाज के लिए भी योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेय का मार्ग सहज और स्वाभाविक होता है, क्योंकि यह दिव्यता की ओर ले जाता है।

 

उन्होंने नैतिक नियमों (यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और नियम – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) का पालन करने को श्रेय जीवन की आधारशिला बताया। साथ ही, उन्होंने कहा कि आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आत्मिक विकास के साधन हैं, और दिव्यता की प्राप्ति ही मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

 

आचार्य ने सभी से आग्रह किया कि वे श्रेय के मार्ग को अपनाएं और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

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