डायन और बलि प्रथा: अंधविश्वास से मुक्ति के लिए मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक जागरूकता आवश्यक
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न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:जमशेदपुर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से गदरा के दुपुडांग बस्तियों में तीन स्थानों पर तत्व सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों के बीच 200 फलदार पौधे, 25 साड़ियां और 25 धोती का वितरण किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता सुनील आनंद ने डायन प्रथा और बलि प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक किया और इन अंधविश्वासों को समाप्त करने के उपाय सुझाए।
उन्होंने कहा कि परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक क्रिया से ही जाना जा सकता है। जब मनुष्य अपने भीतर बसे परमात्मा को पहचानता है, तो उसका मन मजबूत होता है और वह भय व अंधविश्वास से मुक्त हो जाता है। डायन प्रथा और बलि प्रथा जैसी अमानवीय परंपराएं समाज के पिछड़ेपन का परिणाम हैं, और इन्हें समाप्त करने के लिए लोगों को मानसिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
अंधविश्वास से मुक्ति के लिए आत्मबल आवश्यक
सुनील आनंद ने बलि प्रथा की आलोचना करते हुए कहा कि बलि देने से भगवान नाराज होते हैं, क्योंकि यह संपूर्ण सृष्टि परम पुरुष की मानसिक परिकल्पना है। जब वही परम पुरुष इस सृष्टि के पालनकर्ता हैं, तो वे अपने ही बनाए जीवों की बलि कैसे मांग सकते हैं? उन्होंने कहा कि देवी-देवताओं के नाम पर बलि देने की परंपरा अब त्याग दी जानी चाहिए, क्योंकि समाज विकसित हो चुका है और कई पुरानी मान्यताएं झूठी साबित हो रही हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि डायन प्रथा पूरी तरह से अंधविश्वास और अर्धविकसित समाज की मानसिक बीमारी है। किसी भी मनुष्य को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से इतना मजबूत बनना चाहिए कि वह इन झूठी धारणाओं के प्रभाव में न आए।
उन्होंने कहा कि दुख का असली कारण मनुष्य का अपना संस्कार और कर्मफल है। कोई धनी है, कोई गरीब, कोई स्वस्थ जन्म लेता है तो कोई अस्वस्थ—यह सब उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम है।
झाड़-फूंक नहीं, चिकित्सा से करें इलाज
उन्होंने ग्रामीणों को सलाह दी कि बीमार होने पर ओझा-गुनी के चक्कर में पड़ने की बजाय सरकारी अस्पताल में इलाज करवाएं। झाड़-फूंक से किसी की जान बच नहीं सकती, यह सिर्फ भ्रम है। ओझा-गुनी अंधविश्वास फैलाकर भोले-भाले लोगों को गुमराह करते हैं और डायन के नाम पर निर्दोष महिलाओं की हत्या करवा देते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर तंत्र-मंत्र में इतनी ही शक्ति होती, तो देश की सेना ओझाओं को सीमा पर बैठाकर दुश्मनों को मारने का काम सौंप देती। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, क्योंकि तंत्र-मंत्र से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता।
परमात्मा का भजन करें, मानसिक शक्ति बढ़ाएं
उन्होंने लोगों को सलाह दी कि परमात्मा की भक्ति और कीर्तन से ही आत्मबल बढ़ाया जा सकता है। जब मनुष्य का आत्मबल और भक्ति प्रबल होती है, तो कोई भी व्यक्ति उसे गुमराह नहीं कर सकता। भय और अंधविश्वास से मुक्त होने के लिए लोगों को अपनी आंतरिक शक्ति को विकसित करना होगा और परमात्मा की साधना करनी होगी।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य परम पुरुष की संतान हैं और कोई भी तंत्र-मंत्र से किसी का अहित नहीं कर सकता। इसलिए, अंधविश्वास और भय से मुक्त होकर समाज को जागरूक और सशक्त बनाना ही समय की आवश्यकता है।