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वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी, अब बना कानून**  

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

नई दिल्ली:राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसके बाद यह अधिनियम का रूप ले चुका है। सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी करते हुए इसे “वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025” घोषित किया। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से लंबी बहस और मतदान के बाद पारित हुआ था। राज्यसभा में 14 घंटे तक चली चर्चा के बाद इसे 128 मतों के पक्ष और 95 के विपक्ष में पारित किया गया, जबकि लोकसभा में 12 घंटे की बहस के बाद 288-232 मतों से इसे स्वीकृति मिली। विपक्षी दलों ने इस अधिनियम को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला बताते हुए संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करार दिया, जबकि सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने वाला ऐतिहासिक सुधार बताया।

**सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हुईं याचिकाएं**

इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं दायर की गई हैं। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान और एक सामाजिक संगठन ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 29 का उल्लंघन बताया। याचिकाओं में दावा किया गया कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है और अन्य धर्मों के मुकाबले भेदभावपूर्ण है। ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा कि यह कानून हिंदू, जैन और सिख धार्मिक संस्थाओं को मिलने वाली सुरक्षा को वक्फ संपत्तियों से छीनता है।

**AIMPLB ने घोषित किया राष्ट्रव्यापी विरोध**

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस अधिनियम का जोरदार विरोध करते हुए देशभर में प्रदर्शन और जागरूकता अभियान चलाने की घोषणा की। बोर्ड ने इसे “मुस्लिम पर्सनल लॉ में अनावश्यक हस्तक्षेप” बताया और सरकार से इसे वापस लेने की मांग की।

 

**राजनीतिक रणनीति और बिहार का संदर्भ**

बिहार में आगामी चुनावों को देखते हुए इस अधिनियम को लेकर राजनीतिक रणनीतिकारों ने इसे सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नए विवाद की शुरुआत बताया। जनता दल (यूनाइटेड) के भीतर भी इस मुद्दे पर मतभेद सामने आए, जबकि विपक्षी दलों ने इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ बताया।

 

**तकनीकी संशोधन और कानूनी प्रक्रिया**

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं को तकनीकी रूप से संशोधित करना होगा, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने “वक्फ संशोधन विधेयक” शब्द का उपयोग किया था, जबकि अब यह “वक्फ संशोधन अधिनियम” बन चुका है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह संशोधन याचिकाओं की कानूनी वैधता को प्रभावित नहीं करेगा। सरकार ने अभी तक इस अधिनियम को लागू करने की तिथि की घोषणा नहीं की है, लेकिन विधि मंत्रालय ने इसे “शीघ्र प्रभावी” बताया है।

 

**सरकार और विपक्ष के तर्क**

केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकेगा और उनके प्रबंधन में जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। वहीं, विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह कानून मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है। राज्यसभा में विधेयक पर बहस के दौरान कई सांसदों ने “धार्मिक संस्थाओं में सरकारी दखल” को लेकर चिंता जताई, जबकि कानून मंत्री ने दावा किया कि यह अधिनियम “किसी भी समुदाय के अधिकारों को कम करने के बजाय उनकी संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा”।

 

**आगे की राह**

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं की सुनवाई और AIMPLB के विरोध प्रदर्शनों के बीच, यह अधिनियम भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस को नए सिरे से हवा देने वाला साबित होगा। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में न्यायालय का फैसला धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा।

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