हो” समाज महासभा ने आस्था स्थलों के संरक्षण और पारंपरिक पर्वों के आयोजन के लिए 18.59 करोड़ रुपये के वार्षिक बजट का प्रस्ताव पारित किया

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:चाईबासा में आदिवासी “हो” समाज महासभा ने आस्था स्थलों के संरक्षण और पारंपरिक पर्वों के आयोजन के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन किया। यह बैठक हरिगुटू स्थित कला एवं संस्कृति भवन में हुई, जिसकी अध्यक्षता महासभा की केंद्रीय समिति के उपाध्यक्ष श्री बामिया बारी ने की। बैठक में आदिवासी संस्कृति, परंपरा और आस्था स्थलों के संरक्षण को लेकर विस्तृत चर्चा की गई।
इस महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन आदिवासी कल्याण आयुक्त, झारखंड, राँची के निर्देशों के तहत किया गया था। इसमें देशाऊली-जाहेरस्थान और सरना स्थल के संरक्षण एवं विकास से संबंधित योजनाओं पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में उपायुक्त कार्यालय, कल्याण शाखा और आईटीडीए परियोजना निदेशक द्वारा भेजे गए पत्रों के आधार पर सरकारी सहायता को लेकर चर्चा की गई।
बैठक में पारंपरिक पर्वों के आयोजन के लिए बजट निर्धारण किया गया। महासभा ने प्रमुख त्योहारों—मगे पर्व, बा पर्व, हेरोः पर्व और जोमनामा पर्व—के लिए प्रति गाँव 76,520 रुपये वार्षिक बजट तय किया। झारखंड के 972 गाँवों को ध्यान में रखते हुए कुल 18 करोड़ 59 लाख 4 हजार 360 रुपये का बजट अनुमोदित किया गया। यह बजट सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि दियुरियों (पारंपरिक पुजारियों) को प्रत्यक्ष आर्थिक सहयोग मिल सके।
महासभा ने बैठक में यह भी प्रस्ताव पारित किया कि सरकारी सहायता सीधे “हो” समाज महासभा के माध्यम से दी जाए, जिससे पारदर्शिता बनी रहे और सभी धार्मिक आयोजनों का समुचित संचालन हो। इस प्रस्ताव को आदिवासी समाज की परंपराओं के संरक्षण और सामाजिक समरसता बनाए रखने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
बैठक में महासभा के विभिन्न पदाधिकारी और वरिष्ठ सदस्य शामिल हुए, जिनमें सोमा कोड़ा (राष्ट्रीय महासचिव), विपिन तामसोय (शिक्षा सचिव), गब्बरसिंह हेम्ब्रम (राष्ट्रीय महासचिव, युवा महासभा), सुखराम सोय (उपाध्यक्ष, सरायकेला-खरसांवा जिला), विशु रघु (कोषाध्यक्ष, सरायकेला अनुमंडल), सत्यव्रत बिरूवा (कोषाध्यक्ष, पश्चिमी सिंहभूम), विश्वजीत बिरूवा, पवन बिरूवा, सुरेश पिंगुवा, थॉमस बिरूवा, पाईकिराय हेम्ब्रम और योगेश्वर पिंगुवा समेत कई अन्य वरिष्ठ सदस्य उपस्थित रहे।
“हो” समाज महासभा की इस पहल को समुदाय के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। इससे न केवल पारंपरिक त्योहारों की एकरूपता बनी रहेगी, बल्कि सरकार से प्रत्यक्ष आर्थिक सहयोग मिलने से आस्था स्थलों का संरक्षण और विकास भी सुचारू रूप से संभव हो सकेगा।