मन की संवेदना से खुलेगी ज्ञान की दृष्टि” — राष्ट्रीय सेमिनार में कवि सोनू हेस्सा की कविता ने जगाई चेतना की अलख*

न्यूज़ लहर संवाददाता
रांची: रांची स्थित संत जेवियर्स कॉलेज के ट्राइबल रिसर्च सेंटर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी (सेमिनार) में चाईबासा के टोंटो प्रखंड अंतर्गत हेस्सा सुरनियां निवासी व सेवानिवृत्त शिक्षक तथा हो भाषा के समसामयिक कवि सोनू हेस्सा ने अपनी सशक्त प्रस्तुति से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
सेमिनार का विषय था — “आधुनिक समाज में आदिवासी भाषा एवं साहित्य की प्रासंगिकता”, जिसमें देशभर से आदिवासी भाषाओं के जानकार, साहित्यकार व शोधकर्ता उपस्थित थे। इसी मंच पर सोनू हेस्सा ने अपनी कविता “मेड् मरसल” (अर्थात आंखों की रोशनी) का वाचन किया। इस कविता में कवि ने सिर्फ आंखों से देखने की बात नहीं की, बल्कि मन की संवेदनाओं को जाग्रत कर, सच्चे ज्ञान और गहरी समझ की आवश्यकता पर बल दिया।
कविता में समकालीन आदिवासी समाज ही नहीं, संपूर्ण मानव समाज में हो रहे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलावों की झलक देखने को मिली। कवि हेस्सा ने शब्दों के माध्यम से सामाजिक बुराइयों पर करारा प्रहार करते हुए समझदारी भरे और सामूहिक विकास की ओर बढ़ते जीवन मार्ग का संकेत दिया। उन्होंने कहा, “दृष्टि सिर्फ आंखों से नहीं, संवेदनशील मन और सजग चेतना से मिलती है, जिससे समाज को सही दिशा दी जा सकती है।”
इस महत्वपूर्ण अवसर पर झारखंड की प्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थीं। उन्होंने अपने वक्तव्य में आदिवासी भाषाओं के संरक्षण, साहित्य के सशक्तिकरण और समाज में उसकी भूमिका पर गहन विचार साझा किए। साथ ही उन्होंने सोनू हेस्सा की कविता की सराहना करते हुए कहा कि, “ऐसे कवि समाज की आत्मा की आवाज़ बनकर उभरते हैं।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता संत जेवियर्स कॉलेज के प्राचार्य रोबर्ट प्रदीप कुजूर ने की, जबकि ट्राइबल रिसर्च सेंटर की प्रभारी निदेशक फ्लोरेंस पुर्ति ने आयोजन को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
इसके अलावा रांची विश्वविद्यालय के हो भाषा विभाग से प्रो. डॉ. दमयंती सिंकू, डॉ. प्रदीप कुमार बोदरा सहित रांची के विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, प्राध्यापक एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
सेमिनार का मुख्य उद्देश्य था — आदिवासी भाषाओं की आधुनिक समाज में भूमिका को रेखांकित करना, साहित्य के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाना और युवा पीढ़ी को अपनी भाषाई पहचान से जोड़ना।
कवि सोनू हेस्सा की कविता न केवल एक रचना थी, बल्कि एक विचारधारा थी, जो समाज को आत्मविश्लेषण की राह दिखा गई।