डायन बताकर सामाजिक बहिष्कार: डुमरिया प्रखंड के 118 संताल परिवारों ने उठाई अलग ग्राम प्रधान की मांग

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित डुमरिया प्रखंड के 12 गांवों में 118 संताल परिवारों को डायन और तंत्र-मंत्र जैसी कुरीतियों के नाम पर सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया है। इन परिवारों का आरोप है कि ग्राम प्रधान छोटी-छोटी बातों पर नाराज होकर डायन बताकर बहिष्कार कर देते हैं, जिससे न केवल सामाजिक बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गुरुवार को सभी पीड़ित परिवार जिला मुख्यालय पहुंचे और उपायुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने प्रशासन से अलग ग्राम प्रधान को मान्यता देने की मांग की है।
बहिष्कार के बाद पीने का पानी तक मना, नहीं मिल रही अंतिम संस्कार की अनुमति
टुकाराम मार्डी नामक ग्रामीण ने बताया कि बहिष्कार के बाद इन परिवारों को न तो गांव के जल स्रोतों से पानी लेने दिया जा रहा है और न ही धार्मिक आयोजनों या अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाती है। ग्राम प्रधान द्वारा गांव के अन्य लोगों को निर्देश दिए गए हैं कि इन परिवारों से किसी भी प्रकार की बातचीत न की जाए।
नए ग्राम प्रधान की मांग
13 अप्रैल को छोटा अस्ति गांव में सोनाराम हेंब्रम की अध्यक्षता में इन बहिष्कृत परिवारों ने बैठक कर गुरा हेंब्रम को नया ग्राम प्रधान चुन लिया। अब ये परिवार प्रशासन से आग्रह कर रहे हैं कि इस नव-चुने गए प्रधान को सरकारी मान्यता दी जाए ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं और मूलभूत अधिकारों से वंचित न रहना पड़े।
सरना धर्म मानने के बावजूद हो रहा भेदभाव
खरीदा गांव के भागमत सोरेन ने बताया कि सभी बहिष्कृत परिवार सरना धर्म को मानने वाले हैं, फिर भी उन्हें अंधविश्वास और पारंपरिक सत्ता के नाम पर सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया है। डायन बताकर बहिष्कृत करना ना केवल मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि एक अमानवीय अपराध भी है।
बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित
मनीराम मुर्मू के बेटे कुंवर मुर्मू ने कहा कि वह आठवीं कक्षा में पढ़ता है, लेकिन स्कूल में दूसरे बच्चे उससे बात नहीं करते और न ही साथ खेलते हैं। यही स्थिति अन्य बहिष्कृत परिवारों के बच्चों के साथ भी है, जिससे उनकी शिक्षा और मानसिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ रहा है।
पीड़ित परिवारों ने प्रशासन से अपील की है कि डायन प्रथा जैसी अमानवीय कुप्रथा के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं और सामाजिक न्याय की बहाली के लिए नए ग्राम प्रधान को मान्यता दी जाए।