गैर-यूरोपीय दुनिया की आवाज अब खामोश: पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन

न्यूज़ लहर संवाददाता
वेटिकन सिटी ।कैथोलिक ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में आज निधन हो गया। वेटिकन सिटी से जारी आधिकारिक बयान में बताया गया कि पोप ने स्थानीय समयानुसार सुबह 7 बजकर 35 मिनट पर अंतिम सांस ली। वे बीते पांच सप्ताह से रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती थे, जहां उनका निमोनिया और एनीमिया सहित फेफड़ों के संक्रमण का इलाज चल रहा था।
चिकित्सा परीक्षणों के दौरान उनके खून की जांच में किडनी फेल होने के लक्षण और प्लेटलेट्स की भारी कमी पाई गई थी। इलाज के बाद उन्हें कुछ समय के लिए अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी, और निधन से ठीक एक दिन पहले उन्होंने अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से भी मुलाकात की थी।
1000 वर्षों में पहले गैर-यूरोपीय पोप
पोप फ्रांसिस वर्ष 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप के रूप में चुने गए थे। वे अर्जेंटीना के पहले पोप थे और बीते एक हजार वर्षों में पहले ऐसे व्यक्ति बने, जो यूरोप से बाहर के किसी देश से इस पद पर पहुंचे। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। पोप बनने से पहले वे जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो के नाम से जाने जाते थे। उनके पूर्वज इटली से थे, जो तानाशाह मुसोलिनी के शासन से बचने के लिए अर्जेंटीना आ बसे थे।
धार्मिक और सामाजिक बदलावों के प्रतीक बने पोप
ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद वे 1998 में ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप और 2001 में कार्डिनल बनाए गए। पोप के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले लिए। समलैंगिकता के मुद्दे पर उन्होंने कहा था, “अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज में है, तो मैं उसे जज करने वाला कौन होता हूं।” यह बयान उस समय वैश्विक स्तर पर चर्च और समाज में चर्चा का विषय बना।
पोप फ्रांसिस ने पुनर्विवाह को धार्मिक मान्यता दी और तलाकशुदा लोगों को कम्यूनियन का अधिकार प्रदान किया। उन्होंने इस कदम के ज़रिए समाज के हाशिए पर धकेले गए लाखों कैथोलिकों को फिर से चर्च से जोड़ने की पहल की।
बच्चों के यौन शोषण पर माफी और सुधार की पहल
पोप ने अप्रैल 2014 में चर्चों में बच्चों के साथ हुए यौन शोषण की घटनाओं को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा और क्षमा याचना की। उन्होंने इसे नैतिक मूल्यों की गंभीर गिरावट करार दिया। बीते वर्ष बेल्जियम दौरे के दौरान उन्होंने यौन उत्पीड़न के शिकार 15 पीड़ितों से मुलाकात भी की और उनके दर्द को साझा किया।
भारत से भी रहा गहरा रिश्ता
पोप फ्रांसिस की भारत यात्रा और G7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी चर्चा में रही थी। हाल ही में कांग्रेस द्वारा उनकी इस मुलाकात पर विवादास्पद टिप्पणी किए जाने के बाद पार्टी को माफी भी मांगनी पड़ी थी।
एक युग का अंत
पोप फ्रांसिस न केवल एक धर्मगुरु थे, बल्कि मानवीय मूल्यों, सहिष्णुता, करुणा और सेवा के प्रतीक बन चुके थे। उनका निधन न केवल कैथोलिक ईसाइयों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे आधुनिक समय में चर्च की दिशा और सोच को बदलने वाले एक साहसी नेता के रूप में याद किए जाएंगे।