हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: तामड़िया जाति को मिला न्याय, मुंडा समाज ने राज्य सरकार को घेरा
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड: झारखंड उच्च न्यायालय, रांची ने 19 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में तामड़िया जाति के खिलाफ राज्य सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद झारखंड के मूल आदिवासी समुदाय, विशेष रूप से मुंडा समाज, को बड़ी राहत मिली है। यह मामला पिछले 12 वर्षों से कानूनी लड़ाई में उलझा हुआ था।
आदिवासी मुंडा समाज विकास समिति के ज़िला अध्यक्ष हरिचरण सांडिल ने सोमवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस निर्णय का स्वागत किया और कहा कि यह फैसला झारखंड सरकार की आदिवासी विरोधी मानसिकता को बेनकाब करता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में चाईबासा निवासी लालजीराम तीयू द्वारा की गई एक शिकायत के आधार पर खूंटी के तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी कानूराम नाग की जातीय वैधता पर सवाल उठाए गए थे। आरोप था कि वे मुंडा नहीं, बल्कि तामड़िया जाति से हैं।
इसके बाद राज्य जाति छानबीन समिति द्वारा 2016 में जांच की गई, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि तामड़िया जाति, मुंडा जनजाति की ही एक उपजाति है और इसलिए वह अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आती है। बावजूद इसके, राज्य सरकार के कार्मिक विभाग ने इस रिपोर्ट को झारखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी की एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए छानबीन समिति की रिपोर्ट को सही ठहराया। अदालत का यह निर्णय 12 साल पुराने जातीय विवाद पर विराम लगाता है और एक निर्दोष आदिवासी अधिकारी को न्याय प्रदान करता है, जिसे इतने वर्षों तक निलंबन और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
श्री सांडिल ने आगे कहा कि इस अन्याय के खिलाफ मुंडा समाज अब राज्य सरकार पर मानहानि का मुकदमा दर्ज करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस विषय को लेकर शीघ्र ही जिला समिति की एक बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें केंद्रीय अध्यक्ष बुधराम लागुरी, महासचिव शंकर मुंडा, कोषाध्यक्ष पौदा मुंडा सहित समाज के वरिष्ठ सदस्य भाग लेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे।