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प्रभाती चटर्जी को न्याय नहीं, मां की संपत्ति पर साजिश: अधिवक्ता मनीष दास पर अतिक्रमण का साथ देने,रंगदारी और अवहेलना का आरोप”

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:जमशेदपुर में कानून के रक्षक जब खुद कानून को ताक पर रख दें, तो पीड़ित कहां जाए? शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता मनोरंजन दास के भतीजा  अधिवक्ता मनीष दास पर एक बेहद संगीन आरोप लगा है—52 लाख रुपये की रंगदारी मांगने और कोर्ट के आदेशों की खुली अवहेलना का।

यह मामला साकची के टैंक रोड स्थित बिल्डिंग नंबर 77  टैंक रोड साकची से  जुड़ा है, जिसकी मालिकाना हक उमा चटर्जी के पास था । उन्होंने इंद्रजीत मुखर्जी और अन्य के खिलाफ  पार्टीशन सूट फाइल किया था , जिसमें कोर्ट ने उमा चटर्जी के पक्ष में फैसला सुनाया और बिल्डिंग खाली करने का आदेश दिया।

लेकिन जब आदेश लागू करने की बारी आई, तो अधिवक्ता मनीष दास ने इंद्रजीत मुखर्जी की ओर से तीन महीने की मोहलत मांगी और भावनात्मक अपील करते हुए कहा कि टॉप फ्लोर पर उन्हें मानवीय आधार पर रहने दिया जाए। उमा चटर्जी की ओर से मानवीयता दिखाते हुए यह मोहलत दी भी गई—परन्तु वही मोहलत अब पांच वर्षों की कानूनी त्रासदी में बदल चुकी है।

 

इतना ही नहीं, जब प्रभाती चटर्जी ने बिल्डिंग खाली कराने की बात उठाई, तो मनीष दास ने इंद्रजीत मुखर्जी का खुला पक्ष लेते हुए 52 लाख रुपए की मांग रख दी। इस मांग ने यह साफ कर दिया कि अब यह सिर्फ कब्जा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश बन चुकी है।

प्रभाती ने इस मामले की शिकायत अपने अधिवक्ता के जरिए मनीष दास के चाचा मनोरंजन दास से की, जो खुद शहर के सम्मानित अधिवक्ता माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने अपने हाथ खींचते हुए कहा कि वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते, और पूर्व में ऐसे ही एक मामले में अधिवक्ता तापस  मित्रा  के वादाखिलाफी की मिसाल देकर बात को टाल गए। हाॅलाकि अधिवक्ता तापस मित्रा के जूनियर अधिवक्ता सुनील मिश्रा ने बताया कि हम लोग  उक्त प्रॉपर्टी को स्वयं खाली कर दिया था, अधिवक्ता मनोरंजन दास को केस करने की जरुरत नही पड़ी थी ।

अब यह मामला न सिर्फ कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है, बल्कि कानून और व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। पीड़ित प्रभाती चटर्जी अपनी मां की संपत्ति के लिए इंसाफ की गुहार लगा रही हैं, लेकिन जब अधिवक्ता ही अतिक्रमणकारियों के साथ खड़े हों और रंगदारी की मांग करने लगें, तो यह पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।

प्रभाती की यह लड़ाई अब सिर्फ संपत्ति की नहीं, बल्कि न्याय की गरिमा बचाने की भी हो गई है।

यह खबर विधि व्यवस्था को चेतावनी भी है और समाज को एक आईना भी—कि कानून के नाम पर जब अन्याय होने लगे, तब पीड़ित को आवाज़ देना ज़रूरी हो जाता है।

 

 

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