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अखबार में खबर प्रकाशित होने के बाद अहमदाबाद से रिहा हुए सभी 9 मजदूर

 

न्यूज़ लहर संवाददाता
गुवा ।जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र के मोंगरा गांव से शुरू हुई एक दर्दनाक कहानी आखिरकार राहत की खबर लेकर आई है। अहमदाबाद की बेसन फैक्ट्री में बंधक बनाए गए सभी 9 ग्रामीण मजदूरों को प्रशासनिक कार्रवाई के बाद मुक्त करा लिया गया है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, डालसा के पीएलवी दिल बहादुर थापा की सूचना और पीड़ित परिवारों की गुहार पर सक्रिय हुए जिला प्रशासन ने गुजरात पुलिस के समन्वय से अहमदाबाद की उस फैक्ट्री पर छापा मारा, जहां झारखंड के ये मजदूर पांच महीनों से बंधक बनाए गए थे। बंधुआ मजदूरी, पहचान दस्तावेजों की जब्ती और मानसिक उत्पीड़न जैसी गंभीर स्थितियों में फंसे इन सभी मजदूरों को रिहा कर उनके मूल गांव वापस भेजा गया। रिहाई की खबर मिलते ही बड़ाजामदा के प्लॉटसाई गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। मजदूरों के परिजनों की आंखों में आंसू थे, पर इस बार राहत के। रीना गोप की बेटी ने कहा, हमें लगने लगा था कि मां-पापा कभी नहीं लौटेंगे, लेकिन भगवान और आप लोगों की वजह से वे सुरक्षित वापस आ पाए। हालांकि, परिजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अब इस पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश कर दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग तेज कर दी है। जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में मानव तस्करी से जुड़े गिरोहों की निगरानी के लिए विशेष जांच टीम गठित करने का फैसला लिया है। बीडीओ स्तर पर पंचायतों को निर्देश दिया गया है कि वे रोजगार देने के नाम पर बाहर ले जाने वालों की पृष्ठभूमि की जांच कराएं। रिहा हुए मजदूरों ने लौटने के बाद जो कहानी सुनाई वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। मजदूरों ने बताया, हमें एक कमरे में बंद कर दिया गया था। खाना भी तय समय पर नहीं मिलता था और मजदूरी तो कभी मिली ही नहीं। हमने कई बार निकलने की कोशिश की लेकिन पहचान पत्र नहीं होने के कारण डरते थे। उन्होंने बताया, हमसे सुबह से रात तक बेसन की बोरियां भरवायी जाती थीं, बिना आराम, बिना दवा। औरतें भी सुरक्षित नहीं थीं। गांव के मुखिया प्रतिनिधि और स्थानीय समाजसेवियों ने इस घटना को ‘सिस्टम की नाकामी’ बताया। उन्होंने कहा कि जब तक रोजगार के बेहतर अवसर गांवों में नहीं मिलते, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। इसके लिए सरकार को स्थायी समाधान की दिशा में ठोस नीति बनानी होगी। विधिक सेवा प्राधिकरण के एक प्रतिनिधि ने कहा कि पीड़ितों को न सिर्फ कानूनी सुरक्षा बल्कि आर्थिक सहायता और पुनर्वास की भी जरूरत है। “ये सिर्फ केस फाइल करने का मामला नहीं है, बल्कि टूटे हुए भरोसे को फिर से जोड़ने का प्रयास होना चाहिए।

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