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उरांव आदिवासी समाज द्वारा आयोजित जतरा क्रिकेट कप प्रतियोगिता 17-18 मई को, खिलाड़ियों में उमंग और तैयारी जोरों पर*

न्यूज़ लहर संवाददाता
चाईबासा: उरांव आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और खेल भावना को जीवंत बनाए रखने हेतु जतरा पर्व के पावन अवसर पर इस वर्ष भी जतरा क्रिकेट कप प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। शनिवार को कुडुख सामुदायिक भवन, पुलहातु, चाईबासा में प्रतियोगिता को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता कमिटी के अध्यक्ष लालू कुजूर ने की।

बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि इस वर्ष की दो-दिवसीय जतरा क्रिकेट प्रतियोगिता 17 और 18 मई को सिंहभूम स्पोर्ट्स एसोसिएशन मैदान में आयोजित की जाएगी। फाइनल मैच 18 मई (रविवार) को खेला जाएगा। सुबह 6:00 बजे से प्रतियोगिता की शुरुआत होगी, जिसमें दूर-दराज़ से आने वाली आदिवासी टीमें हिस्सा लेंगी।

अध्यक्ष लालू कुजूर ने कहा, “हमारा उद्देश्य केवल खेल नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान और भाईचारे को भी सहेजना है। जतरा सिर्फ एक पर्व नहीं, हमारी अस्मिता और एकता का प्रतीक है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से हम अपनी युवा पीढ़ी को न केवल खेल की ओर आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि अनुशासन, समर्पण और संस्कृति से भी जोड़ रहे हैं।”

इस वर्ष प्रतियोगिता को और भी आकर्षक बनाने के लिए विशेष पुरस्कारों और ट्रॉफियों की व्यवस्था की गई है। आयोजन समिति ने सभी टीमों से यूनिफॉर्म में आने और अनुशासन का पालन करने का आग्रह किया है ताकि आयोजन मर्यादा और गरिमा के अनुरूप संपन्न हो।

बैठक में आयोजन समिति के कई सदस्य भी मौजूद रहे, जिनमें प्रमुख रूप से रोहित खलखो, कृष्णा मुंडा, पंकज खलखो, शम्भू टोप्पो, निशांत मिंज, संदीप कुजूर, कर्मा कुजूर, कृष्णा खलखो, संतोष टोप्पो, अनिल खलखो, संजय कुजूर, राजेश तिग्गा, दुर्गा खलखो, बजरंग खलखो, पवन कुजूर, बादल केरकेट्टा और सुरज कुजूर शामिल थे। सभी ने आयोजन को सफल बनाने के लिए अपनी जिम्मेदारियां तय कीं और सामूहिक प्रयास की प्रतिबद्धता जताई।

इस आयोजन से न केवल खिलाड़ियों को मंच मिलेगा, बल्कि सामुदायिक सौहार्द, सहयोग और उत्सव का माहौल भी निर्मित होगा, जिसमें ग्रामीण जनजीवन की झलक देखने को मिलेगी। जतरा कप केवल एक खेल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की जड़ों से जुड़ने और उन्हें नई पीढ़ी को सौंपने का एक सुंदर माध्यम बन चुका है।

इस वर्ष की प्रतियोगिता को लेकर न केवल खिलाड़ी बल्कि स्थानीय ग्रामीण समुदाय, बुजुर्ग और युवा भी बेहद उत्साहित हैं। सभी की निगाहें अब 17 मई की सुबह पर टिकी हैं, जब गेंद और बल्ले की टकराहट के साथ उत्सव की शुरुआत होगी और चाईबासा की धरती एक बार फिर खेल और संस्कृति के मेल का साक्षी बनेगी।

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