Regional

बाईदा की धरती पर बिखरी श्रद्धा, संस्कृति और सौहार्द की अनमोल छटा* *छाऊ नृत्य महोत्सव में शामिल हुए पूर्व मंत्री बड़कुंवर गागराई, शिव आराधना और लोकसंस्कृति के संगम को बताया अद्वितीय परंपरा*

 

न्यूज़ लहर संवाददाता
चाईबासा/मझगाँव: धर्म, संस्कृति और परंपरा की पावन गंध से सराबोर मंझारी प्रखंड के बाईदा ग्राम की पवित्र धरती एक बार फिर भगवान शिव की भक्ति, लोक कला और सामाजिक समरसता की अद्वितीय मिसाल बन गई। कल देर शाम पड़सा पंचायत के अंतर्गत आयोजित पारंपरिक छाऊ नृत्य महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री एवं भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बड़कुंवर गागराई शामिल हुए। उन्होंने फीता काटकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया और ग्रामवासियों संग भगवान शिव की पूजा-अर्चना की।

यह आयोजन वर्षों पुरानी उस परंपरा का प्रतीक है, जहां ग्रामीणजन हर साल शिव आराधना के माध्यम से गांव में सुख-शांति, उत्तम फसल और मंगल भविष्य की कामना करते हैं। पूरे क्षेत्र में यह आयोजन एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है।

*मुख्य अतिथि श्री गागराई ने इस अवसर पर कहा,*

यह सिर्फ एक पूजा ही नहीं बल्कि एक आस्था है, एक परंपरा है, जो हम लोग सदियों से करते आ रहे हैं। यह हमारी प्रकृति के साथ जुड़ाव भी है। जब हम अपने इष्टदेव को याद करते हैं तो सिर्फ अपने गांव या अपने देश ही नहीं, बल्कि अपने मन मस्ती में भी ऊर्जा संचालित होती है।

उन्होंने कहा कि छाऊ नृत्य झारखंड की आत्मा है — एक ऐसी कला जिसमें हमारे पुरखों की कहानियाँ, वीरता और श्रद्धा की झलक मिलती है। “हमारे क्षेत्र की माटी ही ऐसी है,” उन्होंने भावुक होकर कहा, “यहां चलना नृत्य है, बोलना संगीत है, और जीवन एक महाकाव्य!”

गागराई ने उपस्थित जनसमूह को राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए जागरूक रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को उनके हक और अधिकार की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकें। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इस तरह के सांस्कृतिक आयोजनों और ग्रामीण विकास के लिए वे हर संभव सहयोग देंगे।

कार्यक्रम में बाईदा और गीतिलआदेर की दो छाऊ नृत्य मंडलियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुतियों से उपस्थित हजारों दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पारंपरिक वेशभूषा, ढोल-मांदर की थाप और कलाकारों की भाव-भंगिमाएं देख ग्रामीणजन मंत्रमुग्ध हो गए।

इस पावन अवसर पर आयोजन समिति के अध्यक्ष, सचिव और सभी सदस्यगण की अथक मेहनत और समर्पण झलक रहा था। आसपास के गांवों से उमड़ा विशाल जनसमूह इस बात का प्रमाण था कि बाईदा की यह परंपरा केवल एक गांव की नहीं, पूरे क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर बन चुकी है।

यह आयोजन न केवल शिव भक्ति का उत्सव था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण था, जिसने यह संदेश दिया कि जब परंपरा, श्रद्धा और लोक कला एक साथ आती है, तब गांवों की आत्मा जाग उठती है।

Related Posts