समाजसेवियों के सहयोग से बुज़ुर्ग को पहुंचाया गया झींकपानी स्थित वृद्धाश्रम* *संकोसाई के मुरलुई सुंडी को मिला सहारा, वृद्धाश्रम में मिला सुरक्षित जीवन का नया ठिकाना*

न्यूज़ लहर संवाददाता
चाईबासा/झींकपानी: कहते हैं कि इंसानियत की सबसे बड़ी पहचान है दूसरों के दुःख में भागीदार बनना। कुछ ऐसा ही भावनात्मक उदाहरण पेश किया समाजसेवियों ने, जब नरसंडा पंचायत के संकोसाई गांव में अकेले और असहाय जीवन जी रहे बुज़ुर्ग मुरलुई सुंडी को सहारा देकर उन्हें झींकपानी स्थित वृद्धाश्रम तक पहुंचाया।
बुज़ुर्ग मुरलुई सुंडी न केवल शारीरिक रूप से अशक्त थे, बल्कि उनका जीवन अत्यंत कष्टमय हो गया था। उनके पास रहने के लिए एक जर्जर कच्चा मकान था और खुद से खाना बनाना भी उनके लिए बेहद कठिन कार्य हो गया था। निःसंतान और अविवाहित मुरलुई सुंडी का जीवन किसी तरह गाँव में मांगकर कट रहा था।
इस दुर्दशा पर समाजसेवी नेहा निषाद की नजर उस समय पड़ी, जब वे संकोसाई गांव में बच्चों के लिए भोजन वितरण कार्यक्रम में भाग ले रही थीं। उन्होंने बुज़ुर्ग की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए तत्काल झींकपानी वृद्धाश्रम से संपर्क किया। इसके बाद उन्होंने समाजसेवी लक्ष्मी बरहा के सहयोग से मुरलुई सुंडी को सुरक्षित रूप से वृद्धाश्रम तक पहुंचाया।
वृद्धाश्रम में अब उनके रहने, भोजन और देखभाल की समुचित व्यवस्था कर दी गई है। मुरलुई सुंडी को जैसे ही यह नया घर और अपनापन मिला, उनके चेहरे पर संतोष और मुस्कान लौट आई। उन्होंने समाजसेवियों और आश्रम के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा।
यह घटना एक बार फिर इस बात को सिद्ध करती है कि समाज में जब संवेदनशील लोग आगे आते हैं, तो किसी की ज़िंदगी में उजाले की किरण फूट सकती है। नेहा निषाद और लक्ष्मी बरहा जैसे समाजसेवी न केवल प्रेरणा हैं, बल्कि मानवता के सच्चे प्रहरी भी हैं।