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ईचा डैम का विरोध झारखंड की अस्मिता की लड़ाई: कोल्हान में उग्र प्रदर्शन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन “अबुआ सरकार ईचा डैम निर्माण कर किसका हित करना चाहती है?” – बिर सिंह बिरुली का तीखा सवाल

 

चाईबासा: झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में ईचा-खरकई बहुउद्देशीय बांध परियोजना को पुनः शुरू किए जाने की कोशिशों के खिलाफ विरोध की ज्वाला एक बार फिर भड़क उठी है। सदर प्रखंड अंतर्गत तांबो चौक पर ईचा-खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान के बैनर तले सैकड़ों ग्रामीणों और आदिवासी प्रतिनिधियों ने उग्र प्रदर्शन कर राज्य सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की। इस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और टी.ए.सी. के सदस्यों का पुतला दहन कर नाराज़गी प्रकट की गई।

संविधानिक संस्थाओं की अवहेलना और आदिवासी अस्मिता पर चोट:
संघ के अध्यक्ष बिर सिंह बिरुली ने तीखा सवाल उठाया – “अबुआ सरकार ईचा डैम निर्माण कर किसका हित करना चाहती है?” उन्होंने आरोप लगाया कि यह परियोजना आदिवासी मूलवासियों के अस्तित्व और अस्मिता पर सीधा हमला है। “यह सरकार न तो आदिवासी हितों की परवाह करती है और न ही संविधानिक संस्थाओं की। जिस टी.ए.सी ने पहले डैम रद्द करने की सिफारिश की थी, आज उसी से सहमति ली जा रही है – यह सरासर धोखा है,” उन्होंने कहा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला, लेकिन अधिग्रहण अधूरा:
प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि डैम पुनर्निर्माण की बात सुप्रीम कोर्ट के आदेश के नाम पर की जा रही है, जबकि सच यह है कि अब तक परियोजना के लिए 20,000 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अधूरा है। साथ ही डूब क्षेत्र में आने वाले 126 गांवों की ग्राम सभाओं से भी अनिवार्य सहमति नहीं ली गई है।

2014 में खुद टी.ए.सी ने की थी परियोजना रद्द करने की सिफारिश:
बिर सिंह बिरुली ने याद दिलाया कि 10 अक्टूबर 2014 को तत्कालीन कल्याण मंत्री चंपई सोरेन की अध्यक्षता में बनी टी.ए.सी उपसमिति ने जल संसाधन विभाग, विधायक दीपक बिरुवा और गीता कोड़ा के साथ डूब क्षेत्र का दौरा कर परियोजना रद्द करने और रैयतों को जमीन लौटाने की सिफारिश की थी। उसी अनुशंसा के आधार पर 12 मार्च 2020 से अब तक डैम का निर्माण कार्य ठप पड़ा है।

“पूंजीपतियों की सरकार बन गई है अबुआ सरकार”
संघ ने सरकार पर आरोप लगाया कि डैम से लाभ आदिवासियों को नहीं, बल्कि टाटा और रूंगटा जैसे पूंजीपतियों को पहुंचाया जाएगा। “अबुआ सरकार अब पूंजीपति बबुआ सरकार बन चुकी है,” बिरुली ने कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन अब आदिवासियों की नहीं, बल्कि झामुमो के एजेंडे की संपत्ति बन चुकी है।

शराब नीति पर भी फूटा गुस्सा:
प्रदर्शनकारियों ने राज्य सरकार की शराब नीति का भी कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि आदिवासी बहुल इलाकों में खुलेआम शराब बिक्री की छूट देकर सरकार युवाओं को नशे की गिरफ्त में धकेल रही है। “जहां एक तरफ शराब घोटाले रोज सामने आ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आदिवासी क्षेत्रों में शराब को बढ़ावा देना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और अपमानजनक है,” बिरुली ने कहा।

संघ ने आंदोलन को और तेज करने की दी चेतावनी:
बिर सिंह बिरुली ने एलान किया कि संघ अब पूरे कोल्हान और झारखंड स्तर पर इस परियोजना के खिलाफ जनांदोलन को तेज करेगा। उन्होंने कहा कि यह केवल डैम का मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और भविष्य की लड़ाई है।

 

प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोग हुए शामिल:
इस विरोध प्रदर्शन में सुरेश सोय, रेयांश समड, माधव चंद्र कुंकल, डोबरो बुड़ीउली, सुरेंद्र बुडउली, जय किशन बिरुली, महेंद्र जमुदा, साधु हो, गुलिया कालुंडिया, रविन्द्र अल्डा, अंकल अल्डा, वाशिल हेंब्रम, वनमाली तमसोय, श्याम कुदादा, विश्वनाथ तमसोय, सुभाष चंद्र सवैया, फूलमती सिरका, सुशीला बोदरा, डेजी हेंब्रम, शांतिप्रिय हैबुरु समेत लगभग 60 से अधिक गांवों के ग्रामीण और प्रतिनिधि मौजूद थे।

निष्कर्ष:
ईचा डैम को लेकर उठ रही आवाजें यह स्पष्ट कर रही हैं कि यह केवल विकास बनाम पर्यावरण या विस्थापन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह झारखंडी पहचान, आदिवासी अधिकारों और संवैधानिक मान्यताओं की रक्षा का सवाल है। सरकार को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे पर पुनः विचार करे और जनमत के विरुद्ध कोई कदम न उठाए।

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