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पति की साजिश में फंसी पीड़िता? इलाज कराने गए मित्र संग रंगेहाथ पकड़वाया, महिला पुलिस नहीं थी मौजूद

न्यूज़ लहर संवाददाता

जमशेदपुर। पारिवारिक विवाद के एक मामले में महिला के साथ घोर अन्याय और पुलिस की संवेदनहीनता का मामला सामने आया है। अमनदीप सिंह नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी कृतिका कौर को झूठे आरोप में पकड़वाने की साजिश रची और सीताराम डेरा थाना पुलिस ने भी बिना महिला पुलिसकर्मी के उन्हें हिरासत में लेकर थाने में बंद कर दिया।

दरअसल, टेल्को निवासी अमनदीप सिंह का अपनी पत्नी कृतिका कौर और नाबालिग पुत्री रवींदर सिंह के साथ लंबे समय से ससुराल संबंधी विवाद चल रहा था। इस मामले को लेकर अमनदीप सिंह के अधिवक्ता मणि भूसन कुमार  ने न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी श्री अदनान अकीब की अदालत में INFORMATERY   पिटीसन दाखिल किया  था ।

बीते 20 तारीख को एक तथाकथित ‘गुप्त सूचना’ के आधार पर अमनदीप सिंह,सीताराम डेरा पुलिस और मीडिया को साथ लेकर सीताराम डेरा स्थित एक फ्लैट पर पहुंचा, जहां उसकी पत्नी कृतिका कौर अपने परिचित सिमरनजीत सिंह के साथ थीं। पुलिस ने दोनों को रंगेहाथ पकड़ने का दावा करते हुए थाने ले आई। परंतु, इस कार्रवाई में महिला पुलिसकर्मी की अनुपस्थिति गंभीर सवाल खड़े करती है।

महिला का पक्ष जानना जरूरी है। पीड़िता कृतिका कौर ने स्पष्ट किया है कि वह अपने इलाज के सिलसिले में उस फ्लैट में थी, जहां सिमरनजीत सिंह दवाइयां पहुंचाने आए थे। महिला का शरीर दो हिस्सों में गंभीर रूप से घायल है और इलाज में एक लाख रुपए से अधिक का खर्च आने की बात कही गई है। इस चोट के लिए महिला ने अपने पति आमदीप सिंह पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया है, जिसका इलाज टाटा मेन हॉस्पिटल (टीएमएच) में कराया गया है। इस संदर्भ में कृतिका कौर ने झारखंड हाईकोर्ट में डावरी एक्ट के तहत मामला दायर किया है।

सिमरनजीत सिंह ने भी स्पष्ट किया कि वह सिर्फ मानवीय आधार पर एक मित्र की मदद कर रहे थे। उन्होंने किसी भी तरह के अवैध या अनैतिक संबंध से इंकार करते हुए कहा कि उन्हें साजिशन फंसाया गया है।

इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बिना महिला पुलिस की मौजूदगी के एक पीड़ित महिला को थाने में लाकर बंद करना कानून और मानवाधिकार दोनों के खिलाफ है। वहीं, पति द्वारा मीडिया को साथ लेकर पहुंचना यह संकेत देता है कि उसकी मंशा सिर्फ विवाद नहीं, बल्कि महिला की सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करना भी था।

इस मामले ने न केवल एक महिला के मान-सम्मान को आघात पहुंचाया है, बल्कि पुलिस की कार्यशैली को भी कठघरे में ला खड़ा किया है।   अब देखना यह है कि प्रशासन और न्यायालय इस प्रकरण में निष्पक्षता के साथ कैसे कार्रवाई करते हैं।

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