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झामुमो की डिक्शनरी से अस्मिता, अस्तित्व और पहचान जैसे शब्द मिट चुके हैं” – बिर सिंह बिरुली

 

चाईबासा: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) द्वारा राज्य के विभिन्न जिला मुख्यालयों में केंद्र सरकार से सरना/आदिवासी धर्म कोड की मांग को लेकर एकदिवसीय धरना प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस धरने के दौरान मंत्री दीपक बिरुवा ने आदिवासी समुदाय के हक, अधिकार, भाषा, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए सरना धर्म कोड को आवश्यक बताया। वहीं सांसद जोबा मांझी ने सरना धर्म कोड को आदिवासियों की असली पहचान करार देते हुए आरोप लगाया कि आदिवासियों को साजिश के तहत समाप्त करने की कोशिश की जा रही है।

हालांकि इस संदर्भ में अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों की अखिल भारतीय परिसंघ, पश्चिम सिंहभूम के सचिव बिर सिंह बिरुली ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी की। उन्होंने मंत्री और सांसद पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जिन लोगों ने वर्षों से सत्ता में रहते हुए कोल्हान में आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व को नजरअंदाज किया, वे आज भाषा और संस्कृति की बात कर रहे हैं, यह हास्यास्पद है।

बिरुली ने कहा कि ईचा डैम जैसी विनाशकारी विस्थापन परियोजनाओं पर इन नेताओं की चुप्पी दर्शाती है कि उनका असली सरोकार आदिवासियों से नहीं, बल्कि बहुदेशीय परियोजनाओं और उनके लाभ से है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या टी.ए.सी जैसी संवैधानिक संस्थाओं से सहमति दिलाकर ही आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा की जाएगी?

उन्होंने झामुमो पर निशाना साधते हुए कहा कि “झामुमो की डिक्शनरी से अस्मिता, अस्तित्व और पहचान जैसे शब्द ही गायब हो चुके हैं।”

बिरुली ने राज्य में जारी शैक्षणिक हालात पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि झारखंड में आज घोषित दसवीं बोर्ड परीक्षा परिणाम में पश्चिमी सिंहभूम जिला 24वें पायदान पर है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कोल्हान क्षेत्र में लंबे समय से झामुमो नेताओं का वर्चस्व रहा है, लेकिन माइंस, खदान और डीएमएफटी फंड की ठेकेदारी और कमीशनखोरी के कारण शिक्षा क्षेत्र की अनदेखी होती रही। उन्होंने कहा कि अगर शिक्षा पर थोड़ी भी गंभीरता दिखाई गई होती, तो परिणाम आज कुछ और होते।

इसके साथ ही मझगांव विधायक निरल पुरती की गैरहाजिरी पर भी बिरुली ने टिप्पणी करते हुए कहा कि धरना में अनुपस्थित रहकर माननीय विधायक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे सरना धर्म के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विधायक ने खुद को पार्टी लाइन से अलग कर आदिवासी हितों को नजरअंदाज किया और ईसाई अल्पसंख्यक पहचान को प्राथमिकता दी।

यह प्रेस विज्ञप्ति आदिवासी समाज के भीतर उठ रहे सवालों और सत्ताधारी दल की नीतियों पर गहराते अविश्वास को उजागर करती है।

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