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दुर्लभ औषधीय पौधा गंधप्रसारिणी की जैव विविधता बचाने का प्रयास, मेरीन ड्राइव किनारे किया गया रोपण

न्यूज़ लहर संवाददाता
जमशेदपुर। जैव विविधता को संरक्षित करने और औषधीय महत्व रखने वाले दुर्लभ पौधों को विलुप्त होने से बचाने की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम उठाया गया है। आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम ग्लोबल और प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स एंड प्लांट्स के संयुक्त प्रयास से शहर के मेरीन ड्राइव क्षेत्र में गंधप्रसारिणी (जिसे स्थानीय भाषा में गंधालसाग या गंदालपत्ता कहा जाता है) का रोपण किया गया है। यह औषधीय बेल अब साकची पंप हाउस से लेकर कदमा टोल ब्रिज तक की झाड़ियों में रोपित की गई है।

संस्था के कार्यकर्ताओं ने बताया कि यह पौधा आमतौर पर दुर्गंध के कारण घरों के बागानों में नहीं लगाया जाता, लेकिन इसके औषधीय गुण इतने अधिक हैं कि इसे संरक्षित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। इस पौधे का तना जमीन में आसानी से जड़ पकड़ लेता है और बेल के रूप में फैलने लगता है, जिससे इसे झाड़ियों में रोपना और फैलाना आसान होता है। इसके कुछ तनों को काटकर झाड़ी में फेंका गया है ताकि वे स्वतः ही अंकुरित हो सकें।

गंधप्रसारिणी आयुर्वेद में एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है जिसका उपयोग मुख्यतः वात विकारों के इलाज में होता है। यह संधि एवं शूल यानी जोड़ों के दर्द, गठिया, पीठ दर्द और घुटनों के दर्द में अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। इसके अलावा यह पाचन सुधारक है, गैस, अपच और भूख न लगने जैसी समस्याओं में सहायक है। मानसिक तनाव, अनिद्रा और सिरदर्द में भी यह लाभकारी है।

त्वचा रोगों में इसकी पत्तियों का लेप फोड़े-फुंसी, खुजली आदि में किया जाता है। पंचकर्म चिकित्सा में इसका तेल ‘गंधप्रसारिणी तैलम्’ के रूप में वात संबंधी रोगों में प्रयोग किया जाता है। बांग्ला और आदिवासी भोज्य संस्कृति में इसे साग के रूप में खाया जाता है।

कार्यकर्ताओं ने कहा कि “जो पौधा घर में नहीं लगाया जा सकता, उसे बाहर प्रकृति में स्थान जरूर मिलना चाहिए, यही जैव विविधता की असली रक्षा है।” इस पहल के माध्यम से न सिर्फ एक लुप्त होती औषधीय विरासत को पुनर्जीवित करने की कोशिश हो रही है, बल्कि समाज को जैविक संतुलन की ओर भी प्रेरित किया जा रहा है।

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