Regional

आपातकाल में जमशेदपुर के आनंदमार्गियों पर भी टूटा कहर, ठाकुर जी सिंह की गिरफ्तारी बनी प्रतीक

 

जमशेदपुर। 25 जून 1975 को देश में लगाए गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दौर कहा जाता है। लेकिन यह दौर आनंदमार्गियों के लिए और भी ज्यादा भयावह था। जमशेदपुर के स्वर्गीय ठाकुर जी सिंह जैसे सैकड़ों साधकों को जेल भेजा गया, उनका परिवार तबाह हुआ और पूरा आनंदमार्ग संगठन सरकारी क्रूरता का निशाना बन गया।

आपातकाल की घोषणा से पहले ही आनंदमार्गियों को टारगेट करने की तैयारी शुरू हो गई थी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर सभी मुख्यमंत्रियों से आनंदमार्गियों की गिरफ्तारी की सूची तैयार करने को कहा था। इसका उल्लेख वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर की चर्चित पुस्तक ‘द इमरजेंसी’ में भी है।

आपातकाल के बाद आनंदमार्ग के कई संगठनों को प्रतिबंधित किया गया, और उनके अनुयायियों को मीसा व DIR कानूनों के तहत गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया गया। बिहार के बांकीपुर जेल में आनंदमार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति को चिकित्सा के नाम पर जहर दिया गया। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से उसे सहा, लेकिन इसके बाद उनका स्वास्थ्य बुरी तरह बिगड़ गया।

जमशेदपुर के ठाकुर जी सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके बेटे सत्येंद्र सिंह (जयदेव) आनंदनगर के मुख्यालय से जबरन घर भेजे गए। उस समय आनंदनगर को कम्युनिस्ट तत्वों ने जला दिया था, और छोटे-छोटे बच्चे असहाय हालत में घर लौटे, जिससे उनके परिवारों पर गहरा मानसिक आघात पड़ा। इस काले दौर में आनंदमार्गियों को बदनाम करने के लिए सिनेमा हॉलों में भ्रामक प्रचार किए गए और सरकारी नौकरियों में कार्यरत लोगों को संगठन छोड़ने का दबाव डाला गया।

यह दौर न केवल लोकतंत्र का अपमान था, बल्कि मानवीय गरिमा के विरुद्ध राज्यसत्ता की क्रूरता का जीवंत प्रमाण भी बना।

Related Posts