तो क्या शहीदों के वंशज को हूल दिवस मनाने से रोकेगी झारखंड सरकार ! राज्य सरकार ने वीर सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू को “हूल दिवस” मनाने से रोका
भोगनाडीह। आज से 170 साल पहले जब वीर सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों के खिलाफ “संताल हूल” का आगाज किया था, जिसमें हजारों लोगों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी, तब उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनके ही वंशजों को, उनके ही गांव में “हूल दिवस” मनाने से रोक दिया जायेगा।
आज वीर सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि उनकी संस्था “सिदो-कान्हू हूल फाउंडेशन” एवं “आतो मांझी वैसी भोगनाडीह” द्वारा 30 जून को प्रस्तावित “हूल दिवस” के कार्यक्रम को प्रशासन ने अनुमति देने से इंकार कर दिया है।
भोगनाडीह में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा – “हमारे पूर्वजों ने इस देश, इस धरती के लिए प्राणों की आहुति दी थी। उनकी याद में भोगनाडीह में जो पार्क पिछली सरकार द्वारा बनाया गया है, वह पार्क और स्टेडियम भी हमारी पैतृक जमीन पर बना है। तो फिर हमें यहाँ किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।”
“हमारा क्षेत्र पाँचवी अनुसूची के तहत आता है, और हमें ग्राम प्रधान ने लिखित अनुमति दी है। उसके बाद हमें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। आप हमें, हमारे ही गांव में कार्यक्रम करने से कैसे रोक सकते हैं?”
उन्होंने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जब इन लोगों ने शहीदों अथवा उनके परिवारों के लिए कुछ नहीं किया, तो आज उन्हें हमें रोकने का भी कोई अधिकार नहीं है।
उन्होंने आरोप लगाया कि जब भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि उलीहातु में, खरसावाँ शहीद दिवस पर सरायकेला खरसावाँ में और शहीद निर्मल महतो के समाधि स्थल पर जमशेदपुर में दिन भर अलग-अलग टाइम स्लॉट में विभिन्न संस्थाओं/ पार्टियों के कार्यक्रम हो सकते हैं, तो फिर यहाँ एक सामाजिक संस्था के कार्यक्रम में क्या दिक्कत है?
ज्ञात हो कि हूल दिवस पर वीर भूमि भोगनाडीह में “सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन” एवं “आतो मांझी वैसी भोगनाडीह” द्वारा एक सामाजिक/ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन एवं पूर्व मंत्री लोबिन हेम्ब्रम अतिथि के तौर शामिल होंगे। इस कार्यक्रम में आदिवासी समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों एवं बड़ी संख्या में आम लोगों के शामिल होने की संभावना है।