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झारखंड की खपड़ा भाजी: स्वाद के साथ सेहत का खजाना, संरक्षण भी जरूरी

न्यूज़ लहर संवाददाता
जमशेदपुर। औषधीय पौधों का महत्व बताना और उनका संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इसी संदेश को लेकर आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से हितकू गांव में बुधवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में आनंद मार्ग के सुनील आनंद ने बताया कि झारखंड के लोग भोजन में जिन सागों का उपयोग करते हैं, उनका औषधीय महत्व भी उतना ही बड़ा है। उन्होंने खपड़ा भाजी, जिसे पुनर्नवा या बिहार में गदपूर्णां के नाम से जाना जाता है, के औषधीय गुणों की जानकारी दी।

सुनील आनंद ने कहा कि पुनर्नवा एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधीय लता है, जिसका नाम संस्कृत शब्द ‘पुनर्नवा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘फिर से नया करने वाला’। यह पौधा खेतों, मैदानों और सड़कों के किनारे आसानी से पाया जाता है। पुनर्नवा के दो प्रकार होते हैं – एक सीजनल, जो जून-जुलाई से अक्टूबर तक उपलब्ध रहता है, और दूसरा बारहमासी, जो पूरे वर्ष पाया जाता है।

पुनर्नवा लीवर को डिटॉक्स करने, उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने, सूजन कम करने और जोड़ों के दर्द व गठिया में लाभकारी होता है। यह एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक है और मूत्र संक्रमण व गुर्दे की बीमारियों में उपयोगी है। पुनर्नवा के सेवन से वजन घटाने, अस्थमा व ब्रोंकाइटिस में राहत, त्वचा रोगों के उपचार और रक्त शुद्धिकरण में भी मदद मिलती है। मधुमेह के मरीजों के लिए भी यह सहायक साबित हो सकता है।

इसका उपयोग पत्तियों को सब्जी की तरह पकाकर, जड़ का चूर्ण या काढ़ा बनाकर, ताजा रस निकालकर या आयुर्वेदिक अर्क के रूप में किया जाता है। कार्यक्रम के अंत में सुनील आनंद ने कहा कि औषधीय पौधों का संरक्षण करना और आने वाली पीढ़ियों तक इसका ज्ञान पहुंचाना समाज की जिम्मेदारी है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेताया कि किसी भी औषधीय पौधे का सेवन चिकित्सक की सलाह और निगरानी में ही करें।

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