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देर रात ढाई वर्षीय मासूम को मिला जीवनदान, उरांव समाज रक्तदान समूह ने फिर रचा मानवता का उदाहरण

 

चाईबासा: तांतनगर प्रखंड के कोकचो पंचायत में देर रात उस समय हड़कंप मच गया जब एक ढाई वर्षीय मासूम की हालत अचानक बिगड़ने लगी। बच्चे की प्लेटलेट की संख्या चिंताजनक रूप से गिर चुकी थी और हीमोग्लोबिन में कोई सुधार नहीं हो रहा था। डॉक्टरों ने तत्काल O पॉजिटिव ताजे रक्त की जरूरत बताई, लेकिन ब्लड बैंक में मौजूद पुराने रक्त से बच्चे की हालत में सुधार संभव नहीं था।

ऐसे में रात लगभग 11:30 बजे उरांव समाज रक्तदान समूह के मुख्य संचालक लालू कुजूर, जिन्हें लोग ‘ब्लडमेन’ के नाम से भी जानते हैं, को इस आपात स्थिति की जानकारी मिली। उन्होंने तुरंत अपने समूह के प्रेरक सदस्य विष्णु मिंज से संपर्क किया, जो उस समय शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर अपने घर पर विश्राम कर रहे थे।

समय की नज़ाकत को समझते हुए विष्णु मिंज ने बिना कोई देर किए खुद को रक्तदान के लिए तैयार किया और ब्लड बैंक पहुंचकर रक्तदान किया। उनके ताजे रक्त से बच्चे की हालत में तेजी से सुधार आया और उसकी जान बचाई जा सकी।

रक्तदान के बाद विष्णु मिंज ने भावुक होकर कहा, “यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं देर रात किसी की सेवा कर सका। मैं इसके लिए लालू कुजूर जी का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने मुझे यह अवसर प्रदान किया।”

लालू कुजूर ने बताया कि उनका रक्तदान समूह 24 घंटे सेवा के लिए तत्पर रहता है। उन्होंने कहा, “यह पहली बार नहीं है जब हमने आधी रात को रक्तदान किया हो। हमारा उद्देश्य केवल चाईबासा तक सीमित नहीं है—we have extended our service from Chakradharpur, Jamshedpur, Ranchi to Rourkela in Odisha. हमारा मानना है कि रक्तदान का कोई धर्म या जाति नहीं होता, यह सिर्फ इंसानियत का विषय है।”

उन्होंने यह भी कहा कि उनका समूह न मौसम देखता है, न समय और न ही परिस्थितियाँ—सिर्फ यह देखा जाता है कि कहीं किसी की जान बचाई जा सकती है या नहीं।

इस मानवीय कार्य के दौरान सृष्टि चाईबासा के मुख्य संचालक प्रकाश कुमार गुप्ता और धनु कोया भी मौके पर मौजूद थे। यह घटना न केवल रक्तदान समूह की तत्परता का प्रमाण है, बल्कि इस बात की भी पुष्टि करती है कि समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा को ही अपना धर्म मानते हैं।

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