क्या नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत निशांत को सौंपने का वक्त आ गया है? कुशवाहा के बयान से उठे सियासी सवाल!!

न्यूज़ लहर संवाददाता
पटना।पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के ताजा बयान ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सलाह दी है कि वे समय रहते पार्टी और सरकार की कमान बेटे निशांत कुमार को सौंप दें। कुशवाहा के बयान के पीछे उनका व्यक्तिगत मत है या कोई बड़ी राजनीतिक रणनीति, इस पर चर्चाएं तेज हैं।
बिहार की सत्ता और जनता दल यूनाइटेड के भीतर नेतृत्व हस्तांतरण को लेकर लंबे समय से कयास लगते रहे हैं। अब जदयू के पूर्व सहयोगी और वर्तमान में राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने इसे खुले तौर पर उठा दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि वे पार्टी और सरकार की जिम्मेदारी अपने बेटे निशांत कुमार को सौंप दें।
कुशवाहा ने फेसबुक पोस्ट में निशांत कुमार को जन्मदिन की बधाई देते हुए लिखा, “समय और परिस्थिति की नजाकत को समझते हुए नीतीश कुमार जी को यह सच स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब सरकार और पार्टी दोनों का संचालन उनके लिए उचित नहीं है। पार्टी की कमान बेटे निशांत को सौंप देना ही दल के हित में है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुशवाहा का यह बयान सिर्फ शुभकामना संदेश नहीं, बल्कि जदयू के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की बहस को हवा देने वाला है। यह बयान ऐसे समय आया है जब नीतीश कुमार की उम्र, स्वास्थ्य, और बार-बार की राजनीतिक पलटियों को लेकर विरोधी दल पहले ही उन्हें रिटायरमेंट लेने की सलाह दे चुके हैं।
कुशवाहा ने कहा, “सरकार चलाने का उनका लंबा अनुभव है जिसका लाभ राज्य को आगे भी मिलता रहे। परंतु पार्टी की जवाबदेही का हस्तांतरण अब जरूरी है। इसमें देरी दल के लिए अपूर्णीय नुकसान बन सकता है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा का यह बयान कई सिग्नल देता है – पहला, वे जदयू के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की संभावना को सार्वजनिक मंच से उठाकर पार्टी के अंदरूनी नेताओं पर दबाव बना रहे हैं। दूसरा, नीतीश कुमार के बाद जदयू में किसके हाथ में नेतृत्व होगा, यह सवाल अब और मुखर होगा। तीसरा, विपक्ष को भी यह मुद्दा उठाने का मौका मिलेगा कि जदयू परिवारवाद की राह पर तो नहीं बढ़ रहा।
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि कुशवाहा का बयान उनका व्यक्तिगत मत भर नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। बिहार में अगले विधानसभा चुनाव से पहले यह बयान जदयू को भीतर से असहज कर सकता है, खासकर तब जब विपक्षी दल लगातार ‘नई लीडरशिप’ और ‘भविष्य के नेतृत्व’ की मांग को मुद्दा बना रहे हैं।
कुशवाहा के बयान ने नीतीश कुमार के भविष्य और जदयू के नेतृत्व को लेकर बहस को एक बार फिर गरमा दिया है। अब यह देखना होगा कि मुख्यमंत्री इस ‘राजनीतिक सलाह’ को किस रूप में लेते हैं – शुभकामना के साथ आई।