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त्रिनेत्रधारी भोलेनाथ की पूजा का पावन अवसर, आज सावन शिवरात्रि

न्यूज़ लहर संवाददाता
रांची : सावन शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह न सिर्फ भक्ति और उपासना का दिन है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का भी स्रोत है। वर्षभर में कई शिवरात्रियाँ मनाई जाती हैं, लेकिन फाल्गुन माह की महाशिवरात्रि और सावन शिवरात्रि का विशेष महत्व है। सावन शिवरात्रि सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है और इस दिन को कांवड़ यात्रा के समापन दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त भगवान शिव या शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस वर्ष सावन शिवरात्रि का पावन पर्व 23 जुलाई को मनाया जा रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 जुलाई को सुबह 4 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर 24 जुलाई को रात 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। ऐसे में भक्त ब्रह्म मुहूर्त में भी भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकते हैं।

सावन शिवरात्रि के दिन शिवभक्त विभिन्न तीर्थस्थलों से गंगाजल लाकर अपने स्थानीय शिवालयों में भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करना अत्यंत पुण्यकारी होता है। कहा जाता है कि विधिपूर्वक व्रत रखकर और गंगाजल से जलाभिषेक करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और विशेष कृपा प्रदान करते हैं। यह व्रत दांपत्य जीवन में प्रेम और शांति बनाए रखने के लिए भी फलदायी माना जाता है। इस दिन का उपवास क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार और लोभ से मुक्ति दिलाने वाला होता है। विशेषकर कुंवारी कन्याओं के लिए यह व्रत उत्तम बताया गया है।

भगवान शिव को सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाला देवता माना जाता है। वे केवल जल, दूध, बेलपत्र और भांग अर्पित करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भारत की सांस्कृतिक एकता और अखंडता के प्रतीक त्रिनेत्रधारी शिव के मंदिर लगभग हर गांव में हैं। यदि कहीं मंदिर नहीं भी है तो किसी वृक्ष के नीचे शिवलिंग अवश्य स्थापित मिलेगा।

हालाँकि, यह प्रश्न कई लोगों के मन में आता है कि जैसे महान पुरुषों का जन्मदिन मनाया जाता है, वैसे भगवान शिव का जन्म दिवस क्यों नहीं बल्कि उनकी ‘रात्रि’ मनाई जाती है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रात्रि पाप, अज्ञान और तमोगुण का प्रतीक है और इनका नाश करने के लिए हर महीने एक दिव्य ज्योति इस चराचर जगत में अवतरित होती है, जो शिवरात्रि कहलाती है।

धार्मिक ग्रंथों में शिव का अर्थ बताया गया है – ‘जिसमें सम्पूर्ण जगत विश्राम करता है, जो विकारों से रहित है, वही शिव है।’ समुद्र मंथन के समय निकले विष को जब भगवान शिव ने पान किया, तब उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष की तीव्रता को शांत करने के लिए उन्होंने चंद्रमा को अपने शीश पर धारण किया, इसलिए वे चन्द्रशेखर भी कहलाते हैं।

भगवान शिव की अद्भुत छवि में भस्म, नागों की माला, गले में विष, जटाओं में माँ गंगा, ललाट पर अग्नि और वाहन नंदी सम्मिलित हैं। भले ही वे स्वयं साधारण वस्त्रों में रहते हैं, लेकिन अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और कल्याण प्रदान करते हैं।

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