दिल्ली सरकार को दिखाना होगा ठोस काम,चुनावी मोड से बाहर आकर ठोस काम करने की जरूरत

न्यूज़ लहर संवाददाता
नई दिल्ली:दिल्ली में भाजपा की रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार को अब चुनावी मोड से बाहर आकर ठोस काम करने की जरूरत है। 27 साल के लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। ऐसे में जनता को जश्न मनाने और पिछली सरकारों को दोष देने के बजाय इस सरकार से ठोस काम की उम्मीद है। बिजली, पानी, अनाधिकृत कॉलोनियों, यमुना की सफाई, प्रदूषण, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, स्वच्छता, अस्पताल, सड़कें और आम लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए सभी को इस सरकार से आशा है।
लोगों को सिर्फ मोहल्ला क्लीनिक और बसों के नाम बदलने की उम्मीद नहीं है। अगर नगर निगम से लेकर केंद्र तक की ट्रिपल इंजन सरकार सोच-समझकर फैसला नहीं ले पाएगी और शुरुआत में ही फैसले बदलने पड़ेंगे, तो न सिर्फ विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका मिलेगा बल्कि कमजोर हो रहे विपक्षी दलों को भी ताकत मिल जाएगी।
भाजपा ने आम आदमी पार्टी (AAP) को भ्रष्टाचार के आरोपों पर कटघरे में खड़ा कर महज दो प्रतिशत वोटों के अंतर से सत्ता पाई है। केजरीवाल और उनकी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत ईमानदारी थी। लेकिन शराब घोटाले में केजरीवाल समेत कई बड़े नेता जेल गए, 55 करोड़ रुपये सीएम बंगले की सजावट पर खर्च होने के आरोप लगे और भ्रष्टाचार के आरोपों की बाढ़ आ गई, जिसके चलते अंततः AAP को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और मंत्री आमतौर पर लुटियंस दिल्ली या सिविल लाइंस जैसे महंगे इलाकों में रहते आए हैं, लेकिन अब तक किसी भी मुख्यमंत्री को एक साथ दो बंगले नहीं मिले थे। मुख्यमंत्री बनने के चार महीने बाद ही रेखा गुप्ता को सिविल लाइंस में राज निवास के पास दो बंगले मिल गए, एक आवास के लिए और दूसरा आवासीय कार्यालय के लिए।
इतना ही नहीं, इनके सजावट के लिए 60 लाख रुपये का टेंडर भी पास हुआ जिसमें 14 सीसीटीवी कैमरे, 14 एसी, पांच बड़े टीवी, झूमर, दो यूपीएस सहित कई चीजें शामिल थीं। जैसे ही इसका ब्योरा सार्वजनिक हुआ, हंगामा मच गया। समझ से परे है कि जब दिल्ली सचिवालय और विधानसभा पास में हैं, तो पूर्व मुख्यमंत्रियों के विपरीत दो बंगलों की क्या जरूरत थी।
AAP सरकार के नेताओं ने, जिन्होंने केजरीवाल के ‘शीशमहल’ पर 55 करोड़ खर्च किए थे, अब भाजपा मुख्यमंत्री के ‘माया महल’ पर 60 लाख के खर्च को मुद्दा बना दिया। अंततः यह टेंडर काम शुरू होने से पहले ही रद्द करना पड़ा।
दिल्ली सचिवालय के सीएम कार्यालय की भव्य सजावट पर भी पिछली सरकारों ने करोड़ों खर्च किए, लेकिन यह मुद्दा चर्चा में नहीं आया। 1998 में मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित ने भी दिल्ली सचिवालय के तीसरे तल के कार्यालय को आकर्षक ढंग से सजाया था।
इसके अलावा, दिल्ली में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़क से हटाने के कोर्ट के पुराने आदेश को लागू करने के लिए केजरीवाल सरकार ने अभियान चलाया था, जिसके तहत तय समयसीमा पार कर चुके वाहनों को पेट्रोल-डीजल न देने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था।
अब भाजपा सरकार पर नजरें टिकी हैं कि क्या यह सरकार भी केवल फैसले बदलने और नाम बदलने तक सीमित रहेगी या जनता के मुद्दों पर ठोस काम करेगी।