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नेत्रहीनता को बनाया ताकत, परिवार और गुरु की मदद से रौशन ने 22 साल की उम्र में हासिल की JPSC में सफलता

 

कोडरमा :जिले के छोटे से कस्बे डोमचांच बाजार से निकलकर 22 वर्षीय रौशन कुमार ने अपने अदम्य साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार के अथक सहयोग से एक ऐसी मिसाल कायम की है, जो समाज में प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। दृष्टिबाधा को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत बनाते हुए रौशन ने झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की परीक्षा में 340वीं रैंक हासिल कर यह सिद्ध कर दिया कि अगर संकल्प अडिग हो, तो कोई भी कठिनाई मंजिल की राह नहीं रोक सकती।

रौशन बचपन से ही ‘निस्टिगमस’ नामक नेत्र रोग से पीड़ित हैं, जिससे उनकी आंखों की रोशनी बेहद कम है। तमाम चिकित्सकीय प्रयासों के बावजूद यह बीमारी ठीक नहीं हो सकी, लेकिन रौशन ने कभी हार नहीं मानी। यह JPSC में चयन उनकी तीसरी सरकारी नौकरी है। इससे पहले उन्होंने पोस्ट ऑफिस में काम किया और फिर एसएससी सीजीएल परीक्षा पास कर सांख्यिकी पदाधिकारी बने।

इस सफलता की नींव उनके परिवार ने रखी। उनके पिता विनोद कुमार चंद्रवंशी, जो एक पारा शिक्षक थे, 2018 में सेवा निवृत्त हो गए। उसी समय परिवार पर आर्थिक संकट गहराया और रौशन की आंखों की रोशनी भी लगभग समाप्त हो गई। इस कठिन दौर में उनके बड़े भाई संजीव कुमार ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली। वे खुद JPSC की तैयारी कर रहे थे, लेकिन छोटे भाई की सफलता को प्राथमिकता दी। वे न सिर्फ रौशन को पढ़ाते थे, बल्कि पोस्ट ऑफिस की नौकरी के दौरान उनके साथ गांव-गांव जाकर चिट्ठियाँ बांटने में भी मदद करते थे।

रौशन की छोटी बहन स्नेहा कुमारी ने भी हर मोड़ पर उनका साथ निभाया। JPSC परीक्षा में उसने श्रुति लेखक के रूप में रौशन की उत्तरपुस्तिका में उत्तर लिखे। इस संघर्ष की कहानी में पूरा परिवार एक सूत्र में बंधा नजर आता है।

उनकी सफलता में रामाकृष्ण आईएएस अकादमी के शिक्षक विभात सर की भूमिका भी बेहद अहम रही। जब उन्हें रौशन की आर्थिक स्थिति और नेत्रहीनता का पता चला, तो उन्होंने न केवल कोचिंग फीस माफ की, बल्कि उन्हें मानसिक संबल भी दिया। रौशन उन्हें सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि जीवन मार्गदर्शक मानते हैं।

रौशन की यह उपलब्धि उन सभी के लिए प्रेरणादायक है, जो किसी न किसी कारण से खुद को पीछे महसूस करते हैं। आज जब उनका पूरा परिवार गर्व से सर उठाए खड़ा है, तब यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि समर्पण, सहयोग और संघर्ष की एक मिसाल बन गई है। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर आत्मबल और अपनों का साथ हो, तो अंधेरा भी राह दिखा सकता है।

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