पचास साल पुराने मुंडा बर्खास्तगी मामले में ऐतिहासिक फैसला, डीसी चंदन कुमार ने कायम रखा पूर्ववर्ती आदेश

चाईबासा।पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त-सह-दंडाधिकारी चंदन कुमार ने एक पचास वर्ष पुराने मुंडा बर्खास्तगी मामले में ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि बंदगांव प्रखंड के रोउली गांव के तत्कालीन ग्राम मुंडा थिबा गण्झू की बर्खास्तगी पूरी तरह विधिसम्मत थी और उसे अब पलटा नहीं जा सकता। हाईकोर्ट के निर्देश पर पुनः डीसी कोर्ट में आए इस मामले में चंदन कुमार ने अपने फैसले में यह भी कहा कि बर्खास्त मुंडा के वंशजों का अब मुंडा पद पर कोई दावा मान्य नहीं होगा। साथ ही स्पष्ट किया गया कि मानकी और मुंडा को हटाने का अधिकार पूरी तरह उपायुक्त के अधीन है।
मामला 1971-72 से जुड़ा है, जब थिबा गण्झू पर परती जमीन की अवैध बंदोबस्ती, जाहेर थान जैसे धार्मिक स्थल पर खेती करने, शवदाह स्थल पर पौधे लगाने और खराब आचरण जैसे गंभीर आरोप सिद्ध हुए थे। इसके आधार पर सिंहभूम के तत्कालीन उपायुक्त ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद लाका मुंडा को नया ग्राम मुंडा नियुक्त किया गया, जिनके वंशज आज भी इस पद पर आसीन हैं।
थिबा गण्झू ने सात साल बाद डीसी कोर्ट में पुनः बहाली की मांग की, लेकिन उनका आवेदन वर्ष 1981 में खारिज कर दिया गया। उनके निधन के बाद बेटे ने न्यायिक लड़ाई शुरू की, जो कमिश्नर कोर्ट और फिर हाईकोर्ट तक पहुंची। पटना हाईकोर्ट की रांची खंडपीठ ने वर्ष 1988 में मामला पुनः डीसी कोर्ट चाईबासा को भेज दिया। यह मामला वर्षों तक लंबित रहा।
वर्ष 2023-24 में दर्ज हुए पुनरीक्षित वाद (Rev-mise-10-2023-24) की सुनवाई करते हुए उपायुक्त चंदन कुमार ने स्पष्ट किया कि पूर्व उपायुक्त द्वारा की गई बर्खास्तगी वैधानिक थी और उसे चुनौती देने का अब कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने शनिवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह भी स्पष्ट किया कि मानकी और मुंडा जैसे पारंपरिक पदों की नियुक्ति और बर्खास्तगी का अंतिम अधिकार डीसी को ही प्राप्त है। इस निर्णय को ‘सुप्रीम फैसला’ माना जा रहा है, जिसने वर्षों पुराने विवाद का स्थायी समाधान कर दिया है।