हस्तकरघा दिवस पर राज्यपाल ने किया बुनकरों का सम्मान, कहा – “हैंडलूम आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद”

रांची।राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि हस्तकरघा केवल एक कला नहीं, बल्कि यह हमारी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। वे बुधवार को डोरंडा महाविद्यालय, रांची में विवर्स डेवलेपमेंट एंड रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (WDRO) और बुनकर प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित 12वें राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हर धागा और हर बुनाई लोक-कथाओं और रीति-रिवाजों की अनूठी कहानी कहती है। यह आयोजन न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है, बल्कि उन लाखों बुनकर परिवारों को सम्मान भी देता है, जो आत्मनिर्भर भारत की नींव को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।
राज्यपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘हैंडलूम फॉर होम’ अभियानों का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि इन पहलों से स्वदेशी वस्त्रों के प्रति लोगों में सम्मान और रुचि बढ़ी है।
पूर्व वस्त्र मंत्री के रूप में अपने अनुभव साझा करते हुए राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने बुनकरों की समस्याएं नजदीक से समझीं और उनके समाधान के लिए कौशल विकास, तकनीकी सहायता और बाज़ार उपलब्धता जैसे क्षेत्रों में ठोस प्रयास किए।
झारखंड की हस्तकरघा परंपराओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने तसर रेशम और कत्था कढ़ाई की अंतरराष्ट्रीय पहचान की सराहना की। उन्होंने हाल ही में निर्मित दो फिल्मों — “संगठन से सफलता” और “फैशन के लिए खादी” — का उल्लेख करते हुए कहा कि ये फिल्में हथकरघा के सामाजिक और आर्थिक महत्व को जनमानस तक पहुंचाने में उपयोगी रही हैं।
राज्यपाल ने WDRO और बुनकर प्रकोष्ठ की सराहना करते हुए विश्वास जताया कि यह मंच स्थानीय शिल्पियों, नवाचारियों और युवा उद्यमियों को जोड़ने में सफल होगा। उन्होंने सभी से अपील की कि ‘हैंडलूम फॉर होम’ को केवल नारा नहीं, बल्कि अपने जीवन की दिनचर्या का हिस्सा बनाएं, यही बुनकरों के परिश्रम का सच्चा सम्मान होगा।
समारोह के प्रारंभ में राज्यपाल ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी सादगी, तपस्या और जनजातीय समाज के प्रति समर्पित जीवन को सदैव स्मरण किया जाएगा।
कार्यक्रम के अंत में राज्यपाल ने उत्कृष्ट कार्य करने वाले बुनकरों को सम्मानित भी किया।