राज्य सरकार के विकास के दावे फेल, स्वास्थ्य व्यवस्था खाट पर — हजारीबाग के गांवों में आज भी डोली ही सहारा

हजारीबाग।देश को आजादी मिले 75 वर्ष हो चुके हैं और झारखंड राज्य के गठन को भी 25 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन राज्य सरकार की ओर से किए जा रहे विकास के दावे अब खोखले साबित हो रहे हैं। हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ प्रखंड अंतर्गत गोविंदपुर पंचायत के चीतरामो गांव की हकीकत बताती है कि यहां स्वास्थ्य व्यवस्था अब भी खाट पर है — शाब्दिक और वास्तविक रूप में।
एम्बुलेंस नहीं पहुंची, शव लाने को उठानी पड़ी खटिया
चीतरामो गांव में रहने वाले शनिचर मरांडी की मौत कर्नाटक में मजदूरी के दौरान हो गई। शव को जब पैतृक गांव लाया गया तो एम्बुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी, क्योंकि वहां अब तक पक्की सड़क नहीं बनी है। ऐसे में परिजन और ग्रामीणों ने शव को खटिया (डोली) पर रखकर करीब 5 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया, तब जाकर शव गांव पहुंचा और उसका अंतिम संस्कार हो सका।
बरसात में बद से बदतर हालात, 600 परिवार बेहाल
चीतरामो टोला गिधिनिया-परसातरी क्षेत्र की हालत इतनी खराब है कि आज तक सड़क, पुल-पुलिया या स्वास्थ्य केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएं वहां नहीं पहुंची हैं। बरसात के समय यह क्षेत्र पूरी तरह से अलग-थलग पड़ जाता है। विष्णुगढ़ के उप-प्रमुख सरयू साव के अनुसार, इस इलाके में लगभग 600 आदिवासी परिवार रहते हैं, जिन्हें हर साल बारिश में गांव छोड़ना तक मुश्किल हो जाता है। बीमार या घायल व्यक्ति कई बार समय पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं।
“सिर्फ कागज़ों में विकास” — आदिवासी नेता की नाराज़गी
आदिवासी संथाल समाज के केंद्रीय उपाध्यक्ष रमेश हेंब्रम ने इस घटना पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि “अगर राज्य सरकारें वास्तव में आदिवासियों की चिंता करतीं, तो ऐसे गांवों की तस्वीर अब तक बदल चुकी होती। यहां के लोग इलाज हो या शव ले जाने के लिए आज भी खाट का सहारा लेने को मजबूर हैं।”
सवाल वही है: क्या इनकी भी कोई सुनवाई होगी?
सरकार का दावा है कि विकास की रफ्तार अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रही है, लेकिन चीतरामो गांव जैसे उदाहरण साफ कर देते हैं कि यह दावा केवल चुनावी भाषणों तक ही सीमित है। आखिर कब जिला प्रशासन इन ग्रामीणों की आवाज़ सुनेगा? और कब 500 से अधिक आदिवासी परिवारों को सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी?
चीतरामो की यह डोली सिर्फ एक शव नहीं ढो रही थी, बल्कि सरकार की नाकामी की तस्वीर भी अपने साथ लिए चल रही थी।