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उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का दांव, पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी बने उम्मीदवार

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

 

नई दिल्ली। आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों ने पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया है। देश की न्यायपालिका में एक लंबी और सम्मानजनक पारी खेलने के बाद अब वह संवैधानिक पद की दौड़ में उतर रहे हैं। न्यायमूर्ति रेड्डी अपनी निष्पक्ष छवि, संविधान के प्रति आस्था और न्यायिक सेवा की गहरी समझ के लिए जाने जाते हैं।

 

बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को हुआ। उन्होंने बी.ए. और एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1971 में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में वकालत का रजिस्ट्रेशन कराया और हैदराबाद हाईकोर्ट में रिट व सिविल मामलों की पैरवी की। उनकी पहचान एक सक्षम और ईमानदार वकील के रूप में बनी।

 

वह 1988 से 1990 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में गवर्नमेंट प्लीडर रहे तथा 1990 में छह माह तक केंद्र सरकार के एडिशनल स्टैंडिंग काउंसिल का भी दायित्व संभाला। इस दौरान उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय के लिए लीगल एडवाइज़र व स्टैंडिंग काउंसिल के तौर पर भी कार्य किया।

 

उनके न्यायिक करियर की असली पहचान 2 मई 1995 को मिली, जब उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद 5 दिसंबर 2005 को वे गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। महज दो साल बाद, 12 जनवरी 2007 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में उनकी पहचान संविधान के मूल्यों की रक्षा करने वाले न्यायाधीश और संवेदनशील मुद्दों पर गहरी दृष्टि रखने वाले न्यायविद की रही।

 

वर्ष 2011 में अपनी 65 वर्ष की आयु पूरी करने पर वे सेवानिवृत्त हुए। न्यायमूर्ति रेड्डी ने अपने करियर के दौरान शिक्षा, प्रशासनिक पारदर्शिता, मानवाधिकार और संविधान की सर्वोच्चता जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसले दिए। उनकी कार्यशैली को हमेशा संतुलित, स्पष्ट और न्यायोचित माना गया।

 

अब न्यायिक जीवन से निवृत्त होने के 14 साल बाद उन्हें विपक्ष ने उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में उतारने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि उनकी साफ-सुथरी छवि और उच्च संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पण उन्हें एक सशक्त प्रत्याशी बनाते हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में उपराष्ट्रपति पद पर ऐसे अनुभवशील और गैर-राजनीतिक व्यक्तित्व की मौजूदगी संसद की गरिमा को और मज़बूती प्रदान करेगी।

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