अंतिम संस्कार के बाद पीछे मुड़कर देखना क्यों माना जाता है अशुभ, जानिए धार्मिक मान्यता

न्यूज़ लहर संवाददाता
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में श्मशान घाट वह अंतिम स्थान माना जाता है, जहां व्यक्ति का शरीर अग्नि में भस्म होकर पंचतत्व में विलीन हो जाता है। मान्यता है कि दाह संस्कार के बाद ही आत्मा अपने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान करती है—चाहे वह स्वर्ग, नर्क हो या पुनर्जन्म। इसी कारण अंतिम संस्कार को अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना गया है।
शास्त्रों में दाह संस्कार से जुड़े कई नियम और परंपराएं बताई गई हैं। इन्हीं में से एक परंपरा है कि अंतिम संस्कार के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता जुड़ी है। कहा जाता है कि जब शव का दाह संस्कार होता है, तो मृतक की आत्मा अपने परिजनों और प्रियजनों के बेहद करीब रहती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि आत्मा अजर-अमर और अविनाशी है। शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।
ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति शव को अग्नि देने के बाद पीछे मुड़कर देखे, तो आत्मा मोहवश अपने परिजनों के साथ वापस जाने की इच्छा करने लगती है। इस कारण आत्मा के परलोक गमन की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। इसलिए परंपरागत रूप से अंतिम संस्कार के बाद पीछे मुड़कर देखने की मनाही है, ताकि आत्मा बंधनमुक्त होकर अपने अगले लोक की यात्रा पूरी कर सके।
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर से अलग हुई आत्मा को प्रेत कहा जाता है, जो दस दिनों तक अपने परिचित स्थानों और परिजनों के पास मंडराती रहती है। यही कारण है कि 13 दिनों तक मृतक से जुड़े सभी संस्कार और कर्मकांड पूरे किए जाते हैं, ताकि आत्मा को शांति मिल सके और वह अपने अगले गंतव्य की ओर निर्बाध रूप से प्रस्थान कर सके।