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देवधर में हो जनजातीय जीवन-दर्शन संग्रहालय का 8वां स्थापना दिवस धूमधाम से संपन्न

 

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के मझगांव प्रखंड अंतर्गत मध्य विद्यालय देवधर परिसर स्थित हो जनजातीय जीवन-दर्शन संग्रहालय का 8वां स्थापना दिवस सोमवार को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ हर्षोल्लास से मनाया गया। यह संग्रहालय कोल्हान क्षेत्र का पहला केंद्र है, जहां आदिवासी विशेषकर हो समाज की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का संरक्षण किया जा रहा है।

समारोह का उद्घाटन संग्रहालय निर्माण के प्रेरक और कोल्हान प्रमंडल के पूर्व शिक्षा उपनिदेशक अरविंद विजय बिलुंग ने किया। अतिथियों का स्वागत परंपरागत विधि से किया गया और पारंपरिक हो नृत्य के साथ मंच तक ले जाया गया। अपने संबोधन में बिलुंग ने कहा कि संग्रहालयों की पहचान उनकी निरंतरता और समयानुकूल अद्यतन से होती है। उन्होंने खुशी जताई कि यह संग्रहालय आठ वर्षों बाद भी जीवंत है और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोधकर्ताओं को आकर्षित कर रहा है।

 

समाजसेवी नरेश देवगम ने मातृभाषा के साथ राजकीय व अंतरराष्ट्रीय भाषा के ज्ञान की आवश्यकता पर बल दिया। साहित्यकार जवाहरलाल बांकिरा ने आदिवासी जीवनशैली को संकट के समय मानवता के लिए प्रेरणास्रोत बताया और अपनी पुस्तक देशाउलि और इमली का पेड़ की प्रति मुख्य अतिथि को भेंट की। रविंद्र बाल संस्कार केंद्र के निदेशक सिकंदर बुड़ीउली ने युवाओं को स्वरोजगार अपनाने की सलाह दी, जबकि ओड़िशा से आए समाजसेवी सेलाय पुर्ति ने परंपराओं को न भूलने का आग्रह किया।

मध्य विद्यालय देवधर के प्रभारी जगदीश सावैयां ने क्षेत्र में उच्च विद्यालय की कमी पर चिंता जताई और जनप्रतिनिधियों से पहल करने की मांग की। राज्य साधनसेवी शिक्षक कृष्णा देवगम ने संग्रहालय को शिक्षण सामग्री के रूप में उपयोग करने की जानकारी दी।

कार्यक्रम में सरस्वती चातर, डॉ. संजीव कुमार तिरिया, डॉ. बासमती सामड, मोहन तिरिया, देवानंद तिरिया, प्रभात तिरिया, मेनंती पिंगुवा, सुभाष हेम्ब्रम, महाती पिंगुवा, कविता महतो, चंद्रशेखर तामसोय, जनक किशोर गोप, मार्शल पुरती समेत बड़ी संख्या में स्थानीय लोग शामिल हुए। बच्चों ने पारंपरिक नृत्य व गीत प्रस्तुत किए।

विशेष उपस्थिति में सरिता पुरती, अनीता सोय, मंगल सिंह मुंडा, दामु सुंडी, बलभद्र सावैयां, सानगी दोंगो, पेलोंग कांडेयांग, बासमती बिरुवा, नंदलाल तिरिया और मार्शल कोडांकेल भी उपस्थित रहे। यह आयोजन हो संस्कृति के संरक्षण के साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत साबित हुआ।

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