झारखंड की प्राकृतिक धरोहर: हर ओर बिखरी काशी के फूलों की सफेदी मौसम, परंपरा और धार्मिकता का संगम है काशी का फूल

झारखंड की प्राकृतिक धरोहर: हर ओर बिखरी काशी के फूलों की सफेदी
मौसम, परंपरा और धार्मिकता का संगम है काशी का फूल
जमशेदपुर:काशी के फूल झारखंड में बहुत आयत मात्रा में पाए जाते हैं कहा जाता है कि काशी के फूल फोटोस झाड़ जंगल यही सब झारखंड के पहचान भी है.
काशी के फूल बरसात जाने का प्राकृतिक अनाउंसमेंट भी है अगस्त के आखिरी सप्ताह से काशी के फूल खिल जाने लगते हैं सड़क किनारे हो जंगल हो या फिर पहाड़ों में इसकी चमक मोतियों जैसे सफेद नजर आती है जिससे देखने में और खूबसूरत लगने लगता है.
पर्यावरणविद मुरारी सिंह कहते हैं कि काशी के फूल का फूलना बरसात के जाने का इशारा भी होता है वही नवरात्रि व पर्व त्यौहार आने का भी इशारा होता है..
इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाई बनाने में भी किया जाता है वही पूजा रूम में झाड़ू नहीं लगाने के चलते काशी के डंठल से ही झाड़ू बनाया जाता है जिसे पूजा घर में लोग झाड़ू के रूप में इस्तेमाल करते हैं..
मुरारी सिंह आगे बताते हैं कि रामचरितमानस में काशी फूल का उल्लेख अरण्यकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा किया गया है, जहाँ शरद ऋतु के आगमन और वर्षा के अंत का संकेत देते हुए एक चौपाई मे तुलसीदास कहते हैं कि..”फूले कास सकल महि छाई, जानहुं बरखा कृत प्रकट बुढ़ाई”. इस चौपाई का अर्थ है कि जब काशी के फूल पूरी धरती पर छा जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वर्षा ने अपने सफेद बाल में अपना बुढ़ापा प्रकट कर दिया हो.
काशी के फूल कोयले के भंडार में भी उगा है.. जहां कल कोयले के पहाड़ पर सफेद काशी के फूल मोती समान चमक रहे हैं.