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कोल्हान में विस्थापन” पर केंद्रित छठवां कोल्हान सेमिनार सफलतापूर्वक संपन्न

 

चाईबासा: कोल्हान क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना को केंद्र में रखकर आयोजित कोल्हान सेमिनार का छठा संस्करण रविवार को चाईबासा के दुम्बीसाई स्थित अर्जुना हॉल में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इस बार सेमिनार का विषय था – “कोल्हान में विस्थापन”, जिसमें झारखंड के विभिन्न हिस्सों से आए शोधकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र और बुद्धिजीवी शामिल हुए।

सेमिनार की शुरुआत एक प्रकृति-समर्पित परंपरा के साथ की गई। दीप प्रज्वलन की पारंपरिक रस्म की जगह साल के पौधे में जल अर्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। यह पहल आदिवासी समुदाय के प्रकृति प्रेम और सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने का प्रतीक बनी।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सत्यजीत हेमब्रम ने सेमिनार की अब तक की यात्रा पर प्रकाश डाला। पंकज बाँकिरा ने विषय प्रवेश कराते हुए विस्थापन की पृष्ठभूमि और सेमिनार की रूपरेखा साझा की। आयोजन टीम के सदस्यों ने भी अपना परिचय दिया।

शोधपत्रों के माध्यम से रखी गई विस्थापन पर गंभीर बातें

कार्यक्रम के अकादमिक सत्र में कुल पाँच शोधपत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें कोल्हान क्षेत्र में विस्थापन के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभावों पर प्रकाश डाला गया:

बीर सिंह बिरुली ने “ईचा-खरकई डैम: आदिवासी अस्मिता, अस्तित्व और पहचान की लड़ाई” पर शोध प्रस्तुत कर बांध परियोजना से प्रभावित समुदायों की दशा पर चर्चा की।

मुक्ता कुरली ने “विकास के नाम पर विस्थापन” विषय पर झारखंड की स्थिति का आलोचनात्मक अध्ययन साझा किया।

डॉ. अर्पित सुमन टोप्पो ने विस्थापन के बहुआयामी प्रभावों को लेकर व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया।

रियन्स सामड ने ईचा-खरकई परियोजना के खिलाफ हुए जन आंदोलनों के इतिहास को सामने रखा।

बेस बुढ़िउली ने भारत में भूमि अधिग्रहण और आदिवासी विस्थापन के कानूनी और नीतिगत पक्षों पर जानकारी दी।

सेमिनार को संवादात्मक बनाने के उद्देश्य से प्रतिभागियों को चार समूहों में विभाजित किया गया। इन समूहों ने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयामों पर चर्चा की और अपने निष्कर्ष सभी के सामने प्रस्तुत किए। इस प्रक्रिया से विषय पर एक सामूहिक और संतुलित दृष्टिकोण उभरकर सामने आया।

इस आयोजन में कोल्हान सेमिनार टीम के रमेश जेराई, दीपक तुबीड, बेस बुढ़िउली, पंकज बाँकिरा, सत्यजीत हेमब्रम और रबिन्द्र गिलुवा की मुख्य भूमिका रही।
जिला परिषद सदस्य माधव चंद्र कुंकल, शीतल बागे, मधुसूदन बनरा, पूनम देवगम तुबीड, सुभाष चंद्र सिंकू, मोनिका मरांडी समेत कई गणमान्य लोग कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

इस महत्वपूर्ण सेमिनार में रांची, दुमका, चक्रधरपुर, जमशेदपुर, धनबाद, मांझारी, गोड्डा और चाईबासा जैसे विभिन्न क्षेत्रों से आए सैकड़ों प्रतिभागियों की भागीदारी रही, जो इस आयोजन की प्रासंगिकता और व्यापकता को दर्शाता है।

कार्यक्रम को विषय के प्रति युवाओं की जागरूकता, संवाद और शोध के जरिए स्थानीय मुद्दों पर गंभीर विमर्श की एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।

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