Law / Legal

मां बाप की इच्छा बगैर विवाह करने पर नहीं मिलेगी पुलिस सुरक्षा : इलाहाबाद हाइकोर्ट

 

यूपी:माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करने वालों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अपनी मर्जी से विवाह करने वाले जोड़े तब तक पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते….

कोर्ट ने कहा कि अपनी मर्जी से विवाह करने वाले जोड़े तब तक पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते, जब तक उनकी जान और स्वतंत्रता को गंभीर खतरा न हो।

यह फैसला न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

स्वतंत्र रूप से विवाह करने वाले प्रेमी जोड़ों को समाज और परिवार के विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (haryana highcourt) ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। अपनी मर्जी से शादी करने वाले एक जोड़े ने सुरक्षा की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। इस पर पीठ ने कहा कि ऐसे जोड़ों को आपसी समर्थन के साथ समाज का सामना करना सीखना चाहिए। इस तरह वे अपने निर्णय को सही साबित कर सकते हैं।
बेंच को दोनों की जान के खतरा नहीं लगा-
रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट (High court) के जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने केस की सुनवाई की। याचिका श्रेया केसरवानी और उनके पति द्वारा दायर की गई थी। याचिका में पुलिस सुरक्षा मांगी गई थी। उनके वैवाहिक जीवन (married life) में हस्तक्षेप न करने का निर्देश परिजनों को देने की मांग की गई थी।

हाईकोर्ट ने याचिका में की गई उनकी मांगों पर विचार किया और सभी पहलुओं को जानने के बाद याचिका का निपटारा कर दिया। जस्टिस न कहा कि याचिकाकर्ताओं को कोई गंभीर खतरा नहीं है। उनकी जान को खतरा नहीं है, इसलिए उन्हें सुरक्षा नहीं दी जा सकती।

हाईकोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला-
कोर्ट ने लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि जो युवा अपनी मर्जी से शादी करने के लिए भाग जाते हैं, उन्हें पुलिस सुरक्षा देना कोर्ट का काम नहीं है। इसलिए, याचिकाकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा देने की आवश्यकता नहीं है। इस फैसले का मकसद ऐसे मामलों में पुलिस सुरक्षा (police protection) की मांग को रोकना है।

ऐसा कोई तथ्य या कारण नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याचिकाकर्ताओं का जीवन और स्वतंत्रता खतरे में है। ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जो यह साबित करे कि याचिकाकर्ताओं के रिश्तेदारों या परिजनों ने उन पर शारीरिक या मानसिक हमला किया हो या कर सकते हैं। इसलिए सुरक्षा नहीं दी जा सकती।

Related Posts