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आंतरिक साधना ही मोक्ष का मार्ग : आनंद मार्ग शिविर में आचार्य मंत्रचैतन्यानंद

 

जमशेदपुर। आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तत्वावधान में आयोजित निरीक्षण, समीक्षा और संगठनात्मक एकजुटता शिविर के दूसरे दिन शनिवार को शुभारंभ मार्ग गुरुदेव सद्गुरू श्री श्री आनंदमूर्ति जी की प्रतिकृति पर माल्यार्पण के साथ हुआ। इस अवसर पर केंद्रीय प्रशिक्षक आचार्य मंत्रचैतन्यानंद अवधूत ने साधक-साधिकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि वास्तविक मुक्ति बाह्याचारों से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और आंतरिक साधना से संभव है।

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि प्राचीन काल से मनुष्य तप, व्रत, यज्ञ और तीर्थयात्रा जैसी विविध साधनाओं का सहारा लेता आया है, किंतु शिव-पार्वती संवाद इस तथ्य को उजागर करता है कि बाह्य तप, कठोर उपवास या शारीरिक कष्टों के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। यदि यही मार्ग होता तो श्रमिक, पशु या संसाधनों से वंचित लोग सहज ही मुक्ति पा जाते। उन्होंने बताया कि उपवास का वास्तविक अर्थ है — मन को सांसारिक विक्षेपों से हटाकर परमात्मा के निकट स्थिर करना।

अपने संबोधन में आचार्य मंत्रचैतन्यानंद ने साधकों को बाह्य आडंबरों से दूर रहकर आंतरिक साधना को महत्व देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि भगवान शिव ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि जो लोग हाथ में उपलब्ध सत्य को छोड़कर भटकते हैं, वे मूर्खता करते हैं। उन्होंने शिव द्वारा साधक के लिए बताए गए गुणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रद्धा, विश्वास, गुरु-भक्ति, इन्द्रियनिग्रह, समता और संतुलित आहार ही साधना की वास्तविक नींव हैं।

आचार्य जी ने यह भी कहा कि जब ये छह योग्यताएँ विकसित हो जाती हैं, तो किसी अतिरिक्त साधन या आडंबर की आवश्यकता नहीं रहती। उनके इस प्रेरणादायी संदेश ने उपस्थित साधक-साधिकाओं को आत्ममंथन करने और साधना के वास्तविक स्वरूप को आत्मसात करने की दिशा में प्रेरित किया।

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