नक्सल प्रभावित टोपाबेड़ा गांव में बरसात के साथ सिमट जाती है जिंदगी

चाईबासा: जिला मुख्यालय चाईबासा से करीब 50 किलोमीटर दूर, टोंटो प्रखंड के सघन जंगलों में बसा टोपाबेड़ा गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। नक्सल प्रभावित इस गांव के लोग हर साल बरसात के मौसम में ‘टापू’ जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं।
गांव के पास से गुजरने वाली देवनदी पर पुल नहीं होने के कारण ग्रामीणों को नदी तैरकर पार करनी पड़ती है। बरसात में नदी का जलस्तर बढ़ने पर यह रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है, जिससे गांव के लोग हफ्तों या महीनों तक गांव में ही कैद रह जाते हैं। ऐसे हालात में ग्रामीण महीनेभर का राशन पहले से जुटा कर रखते हैं ताकि बारिश के समय जरूरतें पूरी की जा सकें।
टोपाबेड़ा गांव तक पहुंचने का एक वैकल्पिक रास्ता भी है, लेकिन वह करीब 15 से 20 किलोमीटर लंबा है, जिससे समय और पैसे का अतिरिक्त बोझ ग्रामीणों पर पड़ता है। इसलिए अधिकतर लोग देवनदी वाला शॉर्टकट रास्ता ही अपनाते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि देवनदी पर पुल निर्माण की योजना वर्षों से लंबित है। फिलहाल कहा जा रहा है कि पुल निर्माणाधीन है, लेकिन कार्य कब शुरू होगा, यह स्पष्ट नहीं है।
गांव के निवासी घनश्याम लागुरी, नरेश पान, रघु लागुरी, संजय लागुरी आदि का कहना है कि सरकार भले ही गांवों के लिए योजनाएं बनाए, लेकिन नक्सलियों के डर से कोई योजना समय पर पूरी नहीं होती, या फिर शुरू ही नहीं हो पाती। जनप्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी गांव आने से कतराते हैं।
टोपाबेड़ा गांव स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। बच्चों को खेतों की पगडंडियों से होकर स्कूल जाना पड़ता है। नजदीक कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जिससे बीमार पड़ने पर मरीजों को काफी परेशानी होती है।
ग्रामीणों ने मांग की है कि देवनदी पर जल्द से जल्द पुल का निर्माण कार्य शुरू हो, ताकि बरसात में उनका गांव देश और दुनिया से पूरी तरह कट न जाए। साथ ही सरकार से अपील की है कि वह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करवाने के लिए ठोस पहल करे।